मन क्या है, मन कल्पनाओं की एक ऐसी उड़ान हैं जिसकी रफ्तार का कोई अंत ही नहीं है | मन पल भर में है हजारों किलोमीटर की यात्रा करके वापस आ जाता है | इस दुनिया में मन से ज्यादा तेज कोई भी नहीं भाग सकता | मन कभी भी एक जगह टिक कर बैठता नहीं है | मन हर समय कोई ना कोई कल्पना करता ही रहता है | मन को हम सोच का नाम भी दे सकते हैं |
मन क्या है, ईश्वर की सबसे असाधारण और अद्भुत रचना है- मनुष्य का मन | मन ताकतवर होने के साथ-साथ कमजोर भी है, ईमानदार होने के साथ-साथ बेईमान भी है | यह मन मनुष्य को सफलता की ऊंचाइयों तक ले जा सकता है और बर्बादी की हद तक भी पहुंचा सकता है | मन बहुत ही चालाक और रहस्यम है, मनुष्य के पास जो कुछ भी है उनमें से सबसे अधिक खतरनाक और घातक मनुष्य का मन है |
मन क्या है, और कोई ऐसा उपकरण नहीं है जो इतना मुश्किल होते हुए इतना सूक्ष्म हो और जिसमें अपार क्षमता भी हो | इस मन रूपी उपकरण को हम कैसे इस्तेमाल करते हैं, यह सब कुछ हमारे ऊपर निर्भर है | हम इसके द्वारा विनाश कर सकते हैं या फिर इसकी पूरी क्षमता को अच्छे कार्यों के लिए इस्तेमाल कर सकते | ऐसी है ऐसी है मन की शक्ति !
मन क्या है, हम अपनी कमजोरी के कारण और आत्मसंयम की कमी के कारण मन के अधीन हो जाते हैं इसे बहुत ताकतवर बना देते हैं | हम मन को पूरी आजादी देकर इसे बे-लगाम छोड़ देते हैं और खुद इसके गुलाम बन जाते हैं | हमें खुद अपने मन को रास्ता दिखाना चाहिए, लेकिन इसके बजाय हम वही चल पड़ते हैं जिस दिशा में हमें मन ले जाता है | इस बात से कोई भी इनकार नहीं कर सकता कि मन ज्यादातर मूर्खतापूर्ण हरकतें ही करता है और कभी कभी ही अक्लमंदी से काम लेता है | स्वतंत्र इच्छा, तर्क करने की शक्ति, बुद्धि और सोच समझ के बारे में हम बात तो करते हैं लेकिन हमारे अल्फाज, विचार और हमारी करनी साफ-साफ बता देते हैं कि हम कभी-कभी ही इन शक्तियों का इस्तेमाल करते हैं |
मीरदाद ने कहा है ; ऐसा सोचो कि तुम्हारा हर विचार आकाश में आग से लिखा जा रहा है ताकि हर प्राणी, हर पदार्थों उसे देख सके और वास्तव में ऐसा ही होता है |”
इस पर जरा गहराई से सोच विचार करो | अगर हम उन सभी विचारों को जो हमारे मन में आते हैं, स्वीकार कर ले तो शायद हम खुद से भी नजरें नहीं मिला पाएंगे | जिस तरह के विचार लगातार हमारे अंदर चलते रहते हैं, अगर हमें उन्हें जाहिर करना पड़े तो हम खुद से ही नजरें नहीं मिला पाएंगे | हमने सालों से अपने मन में जो क्रोध और गंदगी पट्टी कर रखी है उसका पता चलने पर हम बुरी तरह से दंग रह जाएंगे |
हमारा मन एक कौवे की तरह है | यह हर चमकने वाली चीज को उठा लेता है, चाहे धातु से बनी इन चीजों को इकट्ठा करने से हमारे घोसले में कितनी ही असुविधा क्यों ना पैदा हो जाए |”
मन में इकट्ठी हुई यह बेकार की चमकने वाली धातु सड़कर पांच जानलेवा बीमारियों में बदल गई है जिन्होंने मन को जकड़ लिया है | हमारा हर विचार, हर लफ्ज़ और हर कर्म या तो मन को उन्नत करता है ताकि मन ज्यादा एकाग्र हो सके या फिर उसे अच्छे रास्ते से दूर कर देता है | यह पांच जानलेवा बीमारियां है- काम, क्रोध, लोभ , मोह और अहंकार | यह पांचों बीमारियां हमारी तरक्की में सबसे बड़ी बाधाएं और रुकावटें हैं |
हमें इन बीमारियों पर लगाम लगाने की और वश में करने की जरूरत होती है | जैसा कि महात्मा गांधी ने कहा है कि अगर एक बार हमारी इंद्रियां बेकाबू हो जाती हैं तो यह उस ” दिशाहीन समुंद्री जहाज में सफर करने जैसा है जिसका चट्टान के साथ टकराकर टुकड़े-टुकड़े हो जाना लगभग निश्चित है |
एक दादा ने अपने पोते को अपने मन का अनुभव इस प्रकार बताया :
” हम सब के अंदर दो भेड़ियों के बीच भयानक लड़ाई चलती रहती है | पहला भेड़िया बुराई है, वह है- क्रोध, ईर्ष्या, दुख, पछतावा, लालच, अहंकार, दोषी होने की भावना, मनमुटाव, हीन भावना, झूठाअहंकारऔरअहंभाव और खुद को दूसरों से बेहतर समझने की भावना | दूसरा भेड़िया अच्छाई है, वह है- खुशी, शांति, प्रेम, आशा, धीरज, विनम्रता, दया, भलाई, हमदर्दी, उदारता, सच्चाई, दयालुता और विश्वास | हर इंसान के अंदर भी यही लड़ाई चल रही है |”
पोते ने इसके बारे में सोचा और अपने दादा से पूछा,” जीत किस भेड़िए की होगी ?”
दादा ने कहा,” जिसे तुम पालोगे |”
जिस भेड़िए को हम पालेंगे, बढ़ावा देंगे, उसी से यह तय होगा कि हमारे अंदर की अच्छाई की जीत होगी या बुराई की | इसलिए हमें जीवन में अच्छाई और बुराई की पहचान करके ही आगे बढ़ना चाहिए | अच्छाई और बुराई को पहचानने की ताकत हर इंसान में है बस उसे सही समय पर अपने विवेक की ताकत का इस्तेमाल करना चाहिए और सही फैसला लेना चाहिए |
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