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एक घड़ी की संगति



 एक साहूकार का नियम था कि वह अपने से कर्जा लेने वालों से  बहुत ज्यादा ब्याज लिया करता था । एक दिन वह एक गांव में किसी गरीब किसान के घर अपने पैसों की वसूली करने गया । ब्याज कम करने के लिए किसान ने बहुत जोर लगाया, पर साहूकार ने एक न सुनी । उसकी गाय भैंस और जो घर में अनाज सर सभी ब्याज में गिन लिया, घर में एक कौड़ी बिना न छोड़ी । किसान ने दिल में कहा, ” अच्छा लाला ! अब जा और अपना बिस्तरा अपने आप उठाकर ले जा ।” साहूकार मजदूर ढूंढ रहा था, क्योंकि किसान ने उसके इस व्यवहार के कारण उसे कोई मजदूर लाकर नहीं दिया था । अब गांव में मजदूर कहां से मिले ? संयोग से वहां नजदीक ही एक महात्मा बैठा भजन कर रहा था । उसने साहूकार और किसान के बीच हुई सारी बात को सुन लिया था । महात्मा ने उस घमंडी साहूकार से कहा, ” मैं बिस्तर उठा कर ले चलता हूं, एक शर्त है कि या तो तू मालिक की स्तुति  और प्यार की बातें करते जाना और मैं सुनता जाऊंगा, या मैं करता जाऊंगा और तू सुनते जाना, लाला ने सोचा कि यह कौन सी मुश्किल बात है । यह बातें करता जाएगा और मैं हां-हां करता जाऊंगा ।

महात्मा ने उसका बिस्तरा उठा लिया और प्रभु प्रेम की बातें करते हुए चल पड़ा । जब उसका गांव आ गया तो महात्मा ने कहा कि लो लाला जी, मैं अब जाता हूं, पर महात्मा ने दिल में सोचा कि यह भी क्या याद करेगा कि मेरा किसी महात्मा से मिला हुआ था, इसलिए इसको कुछ बताना चाहिए । महात्मा ने साहूकार से कहा, “आज से आठ दिन के बाद तेरी मौत हो जाएगी | तेरी सारी उम्र में कोई अच्छे कर्म नहीं है । यह जो तुमने एक घंटा मेरे साथ बातें की है, यही एक श्रेष्ठ कर्म है । जब तुम्हें यमदूत ले जाएंगे और पूछेंगे कि इस एक घंटे का सत्संग का फल पहले लेना है कि बाद में ? तब तुम कह देना कि पहले, और फल यही मांगना कि मुझे उस महात्मा के दर्शन  कराओ | फिर जो होगा तुम खुद देख  लोगे ।”

जब मौत आई, धर्मराज के यमदूत आए और साहूकार को पकड़ कर ले गए । जब पेश हुआ तो धर्मराज ने चित्रगुप्त से कहा कि इसके कर्मों का लेखा देखो । का कोई श्रेष्ठ कर्म नहीं था, सिवाय इसके  कि उसने एक महात्मा के साथ एक घंटा बातें की थी । धर्मराज ने पूछा कि तुझे इसका फल पहले लेना है कि बाद में ? साहूकार कहने लगा कि पहले दे दो और जहां वह महात्मा है, मुझे वहां ले चलो ।

महात्माओं का शरीर इस दुनिया में होता है, लेकिन उनकी सूरत खंडो ब्रम्हांडो पर रहती है । यमदूत उसे अपने साथ वहां ले गए जहां वह महात्मा भजन कर रहा था । महात्मा ने कहा, “भाई साहूकार तू आ गया ?’” साहूकार ने कहा, “जी हां, आपकी कृपा से आ गया हूं, लेकिन यमदूत बाहर खड़े मेरा इंतजार कर रहे हैं ।”

अब जहां मालिक का भजन-सुमिरन हो वहां यमदूत नहीं जा सकते । साहूकार को उस समय महात्मा के पास बैठे आनंद लेते हुए काफी देर हो गई । उसका एक घंटे के सत्संग का फल खत्म हो गया । बाहर यमदूत खड़े थे और आवाजों से तथा इशारों से उसे उसे बुला रहे थे । लेकिन वह बाहर नहीं आया । महात्मा ने कहा, चुपचाप बैठे रहो, यमदूत यहां नहीं आ सकते ।” हार कर हारकर यमदूत चले गए । धर्मराज के आगे शिकायत की,  कि जी ! वह नहीं आता । धर्मराज ने कहा कि वहां न मेरा गुजारा है न तुम्हारा, इसलिए अब उसका ख्याल छोड़ दो । सौ  पूर्ण साधु के एक मिनट के सत्संग के बराबर कोई कर्म नहीं है ।

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