Warning: sprintf(): Too few arguments in /www/wwwroot/spiritualstories.in/wp-content/themes/newsmatic/inc/breadcrumb-trail/breadcrumbs.php on line 252

Warning: sprintf(): Too few arguments in /www/wwwroot/spiritualstories.in/wp-content/themes/newsmatic/inc/breadcrumb-trail/breadcrumbs.php on line 252

Warning: sprintf(): Too few arguments in /www/wwwroot/spiritualstories.in/wp-content/themes/newsmatic/inc/breadcrumb-trail/breadcrumbs.php on line 252

Warning: sprintf(): Too few arguments in /www/wwwroot/spiritualstories.in/wp-content/themes/newsmatic/inc/breadcrumb-trail/breadcrumbs.php on line 252

गुरु नानक देव जी की सुंदर साखी

श्री गुरू नानक देव जी नदी के किनारे बैठे थे। वहा पर सेठ दुनीचंद आया। गुरू नानक जी के दर्शन करके उसका मन मोहित हो गया। पूछा ये कौन हैं। भाई मर्दाना जी बोले ये गुरू नानक देव जी हैं। सेठ बोला आप मेरे घर भोजन करने आ सकते है? आज  मेरे पिता का श्राद्ध है। गुरू नानक जी बोले ठीक है कहां आना है आप बता दो, हम आ जाएंगे। मर्दाना जी बड़े हैरान हुए, गुरुजी तो किसी के घर भोजन करते नहीं,आज कैसे मान गए।सेठ दुनीचंद ने कहा महाराज मेरा पता किसी से भी पूछ लीजिए। यहां सबसे अमीर मैं ही हूं। यहां नगर में एक लाख मोर हो ना किसी के पास तो वह अपने घर के आगे एक झंडा लगा देता है। मेरे पास बारह लाख मोर है बारह झंडे लगे हैं। किसी से पूछ लेना सेठ दुनीचंद का घर कहा पर है। आज मेरे यहां बहुत बड़ा लंगर है आप भी आ के खाना।

गुरु नानक देव जी ने तो उसे तारना था। मर्दाने से कहा चल मर्दन्या आज इसी के घर चलते हैं। आज इसके घर खाना खाते हैं। गुरु नानक देव जी और मर्दाना सेठ के घर आए। यहां पंगते लगी थी। नगर के वासी लंगर भोजन कर रहे है। सो ब्राह्मण भी एक तरफ बैठे भोजन कर रहे थे । गुरु नानक देव जी और मर्दाना भी जाकर बैठ गए। सेठ ने कहा आ जाओ आप भी यहां बैठ जाओ। गुरु नानक देव जी ने कहा पहले सबको खिला दो। सेठ कहने लगा आप तो बड़े संतोषी हो, सबर वाले हो। नहीं तो यहां लंगर बटना शुरू होता है तो लोग एक दूसरे पर टूट पड़ते हैं।

गुरु नानक देव जी ने पूछा सेठ ये लंगर किस लिए लगाया है। सेठ कहने लगा महाराज जी ये मैंने अपने पिता पितरों की कल्याण के लिए लगाया है। आज मेरे पिता जी की बरसी है ना। गुरु नानक देव जी ने पूछा तो पिता जी का कल्याण हो गया? सेठ ने कहा हां महाराज, सो ब्राह्मण खा कर चले गए। सुबह से पता नहीं कितने लोग लंगर करके चले गए और अभी भी लंगर चल रहा है। सबने यही कहा तेरे पिता का कल्याण हो गया।

गुरू नानक जी कहने लगे अभी तेरे पिता का कल्याण नहीं हुआ है। वो तो शेर की योनि में जंगल की झाड़ी में तीन दिनों से भूखा बैठा है।” ये बात सुन के सेठ हैरान हो गया। गुरु नानक देव जी ने कहा ये जो तूने मेरे लिए थाली लगाई है न इसे ले जा। वहां नदी के दूसरी तरफ झाड़ी में तेरा पिता बैठा है शेर बनके। मेरी थाली ले जा। हमने अपनी नदर कर दी है। इस थाल में अब ये प्रसाद बन गया है।

सतगुरु के पास दो तरीके से भोग लगता है। एक प्रसाद हम जो पदार्थ खाते हैं। एक गुरू लंगर चख लेवे या गुरू की नदर पड जावे। सेठ को विश्वास नहीं हुआ इतने सालो से वह श्राद्ध कर रहे हैं किसी ने कुछ नहीं कहा। इन्होंने तो नई बात कह दी। पर सच्चे पातशाह की वाणी गुरू नानक जी की नदर देख कर सेठ कांप गया। कहने लगा महाराज वो तो शेर है। कहीं मुझे ही ना खा जाए। गुरू नानक जी ने कहा जा नहीं खाएगा तुझे। तू मेरा दर्शन करके जा रहा है। वो जब तेरा दर्शन करेगा निहाल हो जाएगा। वो तेरा पिता है ये उसे ज्ञान हो जाएगा। जा दुनीचंद जब तक तू लौट के नहीं आयेगा, हम तेरे इंतज़ार में यही बैठे रहेंगे। सेठ चल पड़ा कभी दो कदम आगे कभी दो कदम पीछे। मन कभी मानता, कभी नहीं मानता पर नाव में बैठ के नदी के दूसरी तरफ गया जहा गुरू नानक जी ने कहा था। झाड़ियों के पीछे वो तेरा बाप है तू उसका पुत्र है। जब झाड़ियों के पीछे गया तो वहा शेर मिला और जब झाड़ खड़कने की आवाज हुई तो शेर ने मुंह ऊपर किया और दुनीचंद को देखा तो सेठ को लगा मेरा बाप भी मुझे ऐसे ही देखता था। उसकी आंखें भी ऐसी लगती थी। सेठ ने जाकर प्रसाद का थाल आगे रखा और कहा बापू भूख है ना तुझे तेरे लिए गुरू नानक जी ने प्रसाद भेजा है और जैसे ही उसने प्रसाद खाया वो शेर का रूप त्याग कर जीवात्मा रूप धारण कर लिया और कहने लगा दुनीचंद जल्दी जा तेरे घर परमात्मा खुद चलकर आए हैं। उनकी कृपा से मेरा कल्याण हुआ। तु जा उनके चरण पकड़ कही वो चले ना जाए।

पता है मैं इस योनि में क्यू आया? मेरा अंत समय आया तो पड़ोस में मांस बन रहा था। मांस की बू मेरे पास आई। मेरे अंत समय मुझे लगा थोड़ा मुझे भी मिल जाय तो मैं भी खा लु। तब परमात्मा ने मुझे शेर की योनि दी। और कहां अब जितना मर्जी उतना मांस खा। क्योंकि अंत समय जैसा मन में ख्याल आ जाए, परमात्मा हमें उसी तरफ भेज देता है। अंत समय परमात्मा याद आ जाए तो परमात्मा हमें खुद लेने आ जाए।

अंत काल नारायण सिमरे ऐसी चिंता में जो मरे भक्त त्रिलोचन जे नर मुक्त पीताम्बर मंगे हृदय बसे

सेठ जब घर आया तो गुरू नानक जी के चरणों में गिर पड़ा। कहने लगा सतगुरु आपने सच कहा  आज मेरे पिता का कल्याण हुआ है।

प्यार से बोलो वाहे गुरू।  अब किछ कृपा किजे वाहे गुरू अब किछ कृपा कीजे। वाहे गुरू वाहे गुरू वाहे गुरू जी

.अगर आपको ये लेख पसन्द आया हो, तो इसे अपने दोस्तों के साथ Whats app, Facebook आदि पर शेयर जरूर करिएगा। आप अपनी प्रतिक्रिया हमें कमेंट करके भी बता सकते हैं |

 आपके प्यार व सहयोग के लिए आपका बहुत-2 धन्यवाद।*

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *