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संगत करने का क्या लाभ

 

गुरु अर्जुन साहेब के दर्शन करने हिमाचल के साकेत शहर का राजा आया। गुरुदरबार में कीर्तन चल रहा था । रागी शब्द गा रहे थे लेख ना मिटिये हे सखी जो लिखेया करतार राजा ने प्रश्न किया महाराज : अगर किस्मत के लेख मिटते नही है तो संगत करने का क्या लाभ है ।

महाराज ने कहा : इसका उत्तर आप को समय आने पर देंगे । अभी आप कुछ आराम कर लीजिये ।

राजा रात को सोया तो उसे स्वप्न आया की उसका एक अति दरिद्र परिवार में जन्म हुआ है । उसका जीवन अतयंत दरिद्रता में बीत रहा है । वो युवा हुआ, उसका विवाह हुआ और उसे 4 सन्ताने हुई उसके जीवन के 40 वर्ष बीत चुके है । एक दिन बच्चों की जिद पर वो पीलू के वृक्ष पर चढ़ कर उनके लिए पीलू तोड़ कर नीचे फेंक रहा है, कुछ खुद खा रहा है । एक पके गुच्छे को तोड़ने के लिए वो जैसे ही थोडा ऊपर उठा तो उसका पैर फिसल गया और वो धड़ाम से नीचे गिर गया ।

राजा यकदम उठ बैठा, भोर हो रही थी वो दातुन करने लगा तो मुह से एक पीलू का बीज निकला राजा आश्चर्यचकित हो गया।

सुबह जब वो गुरु दरबार में आया तो गुरू महाराज ने उसे वन विहार करने चलने के लिए कहा । महाराज और राजा घोड़े पर सवार हो कर वन के लिए चल पड़े । उन्हें एक हिरण दिखाई दिया । हिरण का पीछा करते हुए राजा गुरु जी से बिछड़ गया और प्यास से व्याकुल हो कर जल की तलाश में एक नगर में जा पहुँचा कुए पर पानी भरती औरतो से जब उसने पानी माँगा तो वो भय से चीखने लगी । राजा अभी हैरान खड़ा था कि कुछ बच्चे उससे आ कर लिपट गए , कुछ बड़े बजुर्ग और एक औरत उसे हैरानी से देख रहे थे राजा ने उन्हें थोडा ग़ौर से देखा अरे ये क्या ये तो वही लोग है जिन्हें मैंने सपने में अपने कुटुंब के रूप में देखा था । अरे ये बच्चे भी वो ही है जो संपने में मेरी सन्ताने थी । इनका अस्तित्व कैसे हो सकता है । राजा अभी ये सोच ही रहा था की सब लोग उसे खीच कर बेटा , बापू , स्वामी कहते हुए लिपट गए । तभी गुरु अर्जुन देव जी वहां आ गए । राजा ने गुरु जी से खुद को बचाने की गुहार लगाई ।

महाराज ने उन लोगो से पूछा आप इन्हें अपने साथ क्यों ले जा रहे हो उन्होने कहा : हमारा परिजन है , इसे ईश्वर ने हमारे लिए वापिस भेजा है । अभी कल ही ये बच्चों के लिए पीलू तोड़ने के लिए वृक्ष पर चढ़ा था और वृक्ष से गिरने से इसकी मौत हुई थी और परिजनो के इंतजार में इसका शरीर वैधराज के पास रखा था उसे ही लेने आज जा रहे थे की ये जीवित हो कर हमारे सामने आ गया।

गुरु जी ने कहा :भले लोगो ये आप का परिजन नही है , आप के परिजन का शरीर वैध के घर सुरक्षित पड़ा है।

लोग राजा और गुरु जी के साथ वैध के घर गए और हूबहू राजा से मिलती देह देख कर हैरान रह गए । उन्होंने राजा से माफ़ी मांगी और उन्हें विदा किया।

महाराज ने राजा से कहा : राजन,तुमने कहा था अगर लिखा मिट नही सकता तो सत्संग का क्या लाभ ?

आप जो अभी देख के आ रहे है वो आप का आने वाला जन्म था , जो आप को इस जन्म के कुछ गलत कार्यो के कारण भोगना था लेकिन साधू जनो की संगत करने के कारण गुरु नानक साहेब ने आप की दरिद्रता के चालीस साल एक सपने में व्यतीत कर दिए जिस तरह राजमुद्रा पर अंकित अक्षर उलटे होते है लेकिन स्याही का संग मिलते ही वो राजपत्र पर सीधे छपते है ।  उसी तरह सत्संग का साथ हमारी मलिन बुद्धि को सीधे राह पर डाल देती है राजा ये वचन सुन कर धन्य गुरु अर्जुन साहेब कहते हुए गुरु जी के चरणों में नतमस्तक हो गया ।

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