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सूबेदार और गुरु तेग बहादुर साहिब

 

 

एक बार गुरु तेग बहादुर साहिब आगरा जाते हुए रास्ते में एक तंबू में ठहरे हुए थे तो मुगल बादशाह का एक अहलकार गुरु तेग बहादुर साहिब से मिलने के लिए आया | गुरु साहिब उठकर उससे गले मिले | शिष्यों के मन में जिज्ञासा हुई कि मुगल बादशाह तो हिंदुओं पर इतने जुल्म ढा रहा है फिर गुरु साहिब इस मुसलमान अहलकार से इतने प्रेम से क्यों मिले ? गुरु साहिब भी जान गए कि शिष्यों के मन में अभाव आ गया है | जबअहलकार बातें करके चला गया, तब गुरु साहिब ने शिष्यों को यह वृत्तांत सुनाया :

बहुत समय पहले यहअहलकार लाहौर का सूबेदार था | अपने महल की चौथी मंजिल पर सोता था | रोज मालिन उसकी सेज फूलों से सजाती थी | एक दिन की बात है, मालीन फूलों की सेज सजा कर गई ही थी कि एक योगी चमत्कारी पत्थर के सहारे कहीं से उड़ता हुआ वहां आ गया | एक तरह का सूना  कमरा और फूलों की सेज देखकर ख्याल आया, क्या अच्छा हो कि मैं दो घड़ी यहां आराम करके अपनी थकान दूर कर लूं | मेरे पास चमत्कारी पत्थर है, मुझे कौन पकड़ सकता है, जब चाहूंगा मुंह में डाल कर  जाऊंगा | यह सोचकर फूलों की सेज पर जाकर लेट गया | जैसे ही फूलों की महक दिमाग में पहुंची, नींद आ गई | शाम हो गई, लेकिन योगी की आंख न खुली |

सूबेदार रोज की तरह जब शाम को सोने के लिए कमरे में गया तो क्या देखता है कि एक आदमी बिस्तर पर सो रहा है | उसका मुंह खुला है और कोई चीज मुंह से निकल कर बिस्तर पर गिरी पड़ी है | अब सोचो, सूबेदार हो, पर्दे वाला घर हो और एक गैर आदमी उसके बिस्तरे पर आकर सो जाए, कितनी बड़ी बात है | उसने कुछ नहीं कहा, पूरी चारों ओर घूम कर देखा योगी को जगाया नहीं | सोचा कि अपने आप ही उठेगा तो अच्छा है | जो चमत्कारी पत्थर उसके मुंह से  निकल कर बिस्तर पर गिर गया था, उसे उठाकर उसने जेब में डाल लिया और दूर हट कर बैठ गया |

जब योगी उठा तो लगा उड़ने की तैयारी कर ले, लेकिन उड़े कैसे ? उड़ने वाली चीज तो पास ही नहीं | जब सूबेदार को देखा तो रहा सहा होश भी जाता रहा | सूबेदार ने पूछा, योगी तेरा क्या कुछ खो गया है ?” योगी ने डरते हुए कहा,” जी! एक चमत्कारी पत्थर था |” सूबेदार ने पत्थर दिखाते हुए कहा, ” यह तो नहीं ?” योगी ने कहा, जी यही है, कृपा करके मुझे दे दो |” सूबेदार ने पत्थर उसके हवाले करते हुए कहा कि जा ले जा और उड़ जा |

योगी ने सारी बात जाकर अपने गुरु को सुना दी | उसका गुरु बहुत खुश हुआ | उसने दो 4 पत्थर, और कुछ करामाती चीज है और अपने दो चार शिष्यों को साथ लिया और सूबेदार को अपने आने की सूचना और मुलाकात करनी चाहिए | जब उससे मिले तो गुरु ने कहा कि हम आपका शुकराना अदा करने के लिए आए हैं | आपने हमारे एक कसूरवार योगी की जान बक्शी है | यह चमत्कारी पत्थर और कुछ  चमत्कारी चीजें मैं आपको भेंट करने आया हूं, इन्हें कबूल करो | सूबेदार ने कहा, हाय! हाय! आपने अपना जन्म बर्बाद कर लिया | क्या आपको पता नहीं कि परमेश्वर ने हमें यह मनुष्य जन्म का सुनहरी मौका परमार्थी जीवन बिताने के लिए दिया है पर आप लोग मालिक की भक्ति छोड़ कर सोना बनाने और बाहरमुखी उड़ने के भ्रम में फस गए और सार-वस्तु को छोड़कर परछाई के पीछे भाग रहे हो | क्या आपको पता नहीं कि मैं लाहौर का सूबेदार हूं ? खजाना मेरे पास भी है | फिर क्या मुझे सुनारों का काम करना है ? बाकी रह गए चमत्कारी पत्थर | सो मैं नहीं चाहता कि पत्थर मुंह में डालकर चील कौओं की तरह उड़ता फिरूं मैं जब कभी बाहर निकलता हूं मेरे साथ फौज होती है, युद्ध का सामान होता है, मुझे चमत्कारी पत्थर लेकर क्या करना है ? कहानी को समाप्त करते हुए गुरु तेग बहादुर जी ने अपने शिष्यों से कहा, मुगल बादशाह का अहलकार जिसे मैंने बड़े प्यार से गले लगाया था, यह लाहौर का वही सूबेदार था जिसकी कहानी मैंने आपको अभी सुनाई है | यह पहले तो प्रभु का प्यारा भगत था और अब भी है |”

संत मालिक के सभी भक्तों से प्यार करते हैं | इसलिए हमें भी जिंदगी में कुछ ऐसे कर्म करने चाहिए जिससे हमें परमात्मा का प्यार मिले |

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