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गुरु के प्रति विश्वास

गुरु तेग बहादुर जी सासाराम गए बिहार में वहां पर उनका एक बहुत ही प्यारा शिष्य हुआ है भाई फागू, वैसे वहां पर सब उन्हें चाचा फग्गू के नाम से जानते थे। वह भक्ति बहुत ज्यादा करता था सेवा भी बहुत करता था उसका मन बहुत ज्यादा निर्मल था।

वह बहुत सेवा किया करते थे घर घर में जाकर सेवा इकट्ठा करते थे, मतलब जो लोग अपनी कमाई का दसवा हिस्सा सेवा के लिए निकालते थे वह पैसा इकट्ठा करते थे जब सारी सेवा सारे पैसे इकट्ठे हो जाते थे तो वह गुरुद्वारे के लिए दे दिया करते थे वह बहुत ही भावना वाला सिख था।

जब भी वह लोगों के घर कार सेवा लेने जाते थे तो समझाया करते थे कि भगवान का सिमरन किया करो उनकी सेवा किया करो हर समय उस भगवान को याद रखा करो।

चाचा फागू ने सेवा करते करते साथ में अपना घर भी बनाना शुरू कर दिया,और मिस्त्री को बोला कि मेरे घर का दरवाजा इतना बड़ा रखना जिसमें कि कोई अगर घोड़े पर बैठकर आए तो सीधा ही घोड़ा अंदर आ जाए। इस पर मिस्त्री ने बोला कि आप तो घोड़ा बाहर खड़ा करते हो आप तो घोड़ा अंदर लाते नहीं हो तो फिर इतना बड़ा दरवाजा किस के लिए आप बनवा रहे हो ?

चाचा फागू ने कहा कि मेरा गुरु गुरु तेग बहादुर आएगा घोड़े पर बैठकर, तो सब लोगों ने कहा कि वह तो पंजाब में रहते हैं और तुम बिहार में रहते हो इतनी दूर कहां से गुरु आ जाएंगे।लेकिन वह बड़ी ही भावना वाला शिष्य था वह अपने गुरु से बहुत प्यार करता था। अपने सतगुरु के ऊपर उसे पूरा विश्वास था कि मेरे सतगुरु जरूर आएंगे।

जब पूरा घर बन गया बड़ा सा दरवाजा बना, अंदर कमरे बने, और कमरे के अंदर उसने बेड भी लगवा दिए। लेकिन वह उस घर में रहने नहीं लगा, कहता है इस घर में मैं तब रहने आऊंगा, जब मेरा गुरु आएगा। वह रोज उस घर में जाता बेड के पास बैठकर सुमिरन किया करता, सतगुरु को याद किया करता।और बाहर जो बड़े वाला दरवाजा उसने बनवाया था वह कभी भी बंद नहीं किया वह खुला ही छोड़ता था कहता था पता नहीं कब मेरे सतगुरु आ जाए।

एक दिन ऐसा ही हुआ चाचा फागू अंदर बैठे सुमिरन कर रहे थे कि गुरु तेग बहादुर जी घोड़े पर सवार होकर उसी दरवाजे से अंदर की तरफ आ गए।चाचा फागू ने कभी भी गुरु तेग बहादुर जी को देखा नहीं था। बस उनकी महिमा के बारे में ही सुना था।जब चाचा फागू बाहर आए उन्होंने देखा कि घोड़े पर कोई सवार है तो वह उन्हें देखते ही रह गए। इतने में गुरु तेग बहादुर जी बोले कि हम हजारों किलोमीटर दूर चल कर तेरे से मिलने आए हैं और तू दूर खड़ा है।यह सुनते ही चाचा फागु समझ गया कि यह तो गुरु तेग बहादुर जी है।

इतने में गुरु तेग बहादुर जी घोड़े से उतरे तो चाचा फागू गुरु तेग बहादुर जी को अंदर ले गए।पैरों से जूते उतारते हुए आंखों से आंसू बहाने लगे।गुरु के चरण आसुओं से ही धो दिए, और कहने लगा कि मुझे तो पूर्ण विश्वास था कि आप जरूर आएंगे इसीलिए तो मैंने अभी इस घर में रहना शुरू नहीं किया था कि जब तक मेरे गुरु नहीं आएंगे मैं इस घर में तब तक नहीं रहूंगा।

गुरु तेग बहादुर जी बहुत खुश होकर  कहने लगे कि भाई फागू जैसे तूने इस घर का दरवाजा खुला रखा है ऐसे तू अपने हृदय का दरवाजा भी हमेशा खुला रखना ताकि वह मालिक कभी भी तुम्हारे हृदय के अंदर प्रगट हो जाए।थोड़ी देर बाद गुरु तेग बहादुर जी वहां से चलने लगे और कहने लगे भाई फागू जो सेवा तेरे पास इकट्ठी हुई है वह भी हमें दे दे।

जितने भी पैसे चाचा फागू के पास इकट्ठे हुए थे उन्होंने सारे पैसे गुरु को पकड़ा दिए तो गुरु साहिबान ने बोला कि और भी कोई अमानत तेरे पास हमारी पड़ी है वह भी मुझे सौंप दें।यह सुनकर चाचा फागू हैरान रह गया कि मैंने तो सब कुछ दे दिया कुछ भी मैंने अपने पास नहीं रखा। तब गुरु साहिबान ने बोला फिर से सोच लो जब दोबारा सोचा तो चरणों पर गिर गया कहता है हां आपकी एक और चीज मेरे पास है। सब हैरान थे कि चाचा फागू के पास तो कुछ भी नहीं है तो कौन सी चीज रह गई।

फिर चाचा फग्गू ने बोला कि जो आंगन में बेरी का पेड़ लगा है यह भी आप ही का है।सब हैरान होने लगे की बेरी का पेड़ कैसे सेवा में आ गया तू गुरु साहिबान ने बोला कि सबको बताओ कैसे यह पेड़ हमारा है।

 चाचा फागू ने बताया कि जब मैं कार सेवा के लिए घर-घर सेवा मांगने जाता था तो जिसके पास जो होता था वह दे देता था।इसी तरह में एक घर में कारसेवा लेने के लिए गया तो वहां पर एक औरत ने मुझे बोला कि मेरा मर्द घर पर नहीं है तुम बाद में आना जब घर पर सरदार जी हो तो।मैंने बोला कि तू मुझे खाली मत लोटा जो कुछ भी तेरे पास है वह मुझे दे दे।

वह औरत दरवाजे पर झाड़ू लगा रही थी तो उसने झाड़ू में जो कूड़ा इकट्ठा किया हुआ था उसने बोला अपनी झोला आगे करो, मैंने झोली आगे करी तो उसने वह कूड़ा मेरी झोली में डाल दिया यह बेर की एक गुठली उसी कूड़े में थी जिसे मैंने सतगुरु की अमानत समझकर इसी जमीन में गाड़ दिया। इस घर में जितने भी “बेर लगे हुए हैं यह सब सतगुरु के हैं आज से यह बेरी भी सतगुरु आप ही की है।

सतगुरु के दरबार में हर एक भेंट को स्वीकार किया जाता है चाहे वह कोई भी भेंट क्यों ना हो देने वाले के ऊपर होता है कि वह क्या दे रहा है।

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आपके प्यार और स्नेह के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

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