यह साखी गुरु गोविंद सिंह जी के समय की है।गुरु गोविंद सिंह जी दरिया पार करके कीर्तन करने जाया करते थे।बहुत से मल्लाह रोज गुरु को दरिया पार करवाया करते थे।वहीं पर एक मल्लाह था। एक मुसलमान भाई सैदा नाम का था।वह बहुत ही गरीब था उसकी नाव टूटी फूटी थी।लेकिन उसके अंदर बड़ा ही चाव था कि गुरु गोविंद सिंह जी मेरी नाव में
आकर भी कभी बैठे।वह रोज इसी भरोसे नाव को ले जाकर वहां खड़ी कर देता लेकिन दूसरे लोग गुरु जी को बिठा कर दरिया पार करवा देते हैं।
संगत में से कुछ लोग भाई सैदा को जानते थे, उन्होंने देखा कि सैदा के अंदर बहुत तड़प है गुरु के प्रति।तो सबने गुरु जी को जाकर बताया की भाई सैदा आपका रोज इंतजार करता है।लेकिन वह अपनी नाव आगे नहीं लाता क्योंकि उसकी नाव पुरानी है और वह खुद भी बहुत गरीब है।लेकिन उसके अंदर श्रद्धा भावना बहुत ज्यादा है तो गुरु साहिब ने कहा आज हम उसकी नाव में ही चलेंगे।
जब गुरु जी दरिया के किनारे पहुंचे सब लोगों ने अपनी अपनी नाव आगे की तरफ बढ़ा ली, लेकिन गुरु साहिबान सबकी नाव को छोड़कर भाई सैदा की नाव में जाकर बैठ गए।भाई सैदा बहुत खुश हुआ कि आज गुरु साहिबान मेरी नाव में आकर बैठे हैं कुछ संगते गुरु जी के साथ उसी नाव में बैठ गई।भाई सैदा मुंह उल्टी तरफ करके बैठ गया ताकि गुरु की तरफ पीठ ना हो।अक्सर लोग किनारे की तरफ मुंह कर के बैठते हैं, ताकि नाव चलानी आसान हो जाए लेकिन भाई सैदा उल्टा मुंह करके बैठ गया और गुरु के मनमोहक मुखड़े का दीदार करने लगा।
फिर उसने नाव चलानी शुरू की नाव को बार-बार पानी में ही घुमाता रहा ताकि गुरु के दीदार होते रहे। गुरु भी सब कुछ जानते थे वह भी बड़े खुश हो रहे थे। क्योंकि गुरु को ऐसे शिष्य बड़े ही मुश्किल से मिलते हैं जो दिल के पाक साफ हो, बार-बार जब नाव पानी में ही घूमती रही तो साथ में बैठी हुई संगत कहने लगी आज तो लगता है हम किनारे पहुंच ही नहीं पाएंगे ।
तब गुरुजी ने कहा भाई सैदा अब पार भी लगा दे. तब कहीं जाकर सैदा ने नाव सीधी चलानी शुरू कर दी और वह किनारे पर पहुंच गए।भाई सैदा का मन नहीं था कि नाव किनारे लगे लेकिन उसने गुरु साहिबान का कहना भी नहीं टालना था इसलिए उसने नाव को किनारे लगा दिया।
अब जब सब नाव से नीचे उतरने लगे. तो गुरु साहब भी नीचे उतरे और कहने लगे भाई सैदा कितने पैसे दूं तो भाई सैदा ने बोला की एक मल्लाह दूसरे मल्लाह से कभी पैसे नहीं लेता। यह हमारी रिवायत है तो गुरुजी हंसते हुए बोले मेरी कौन सी यह नाव चलती है, जो तुम्हें इसके बदले, मैं भी पार लगा दूंगा।
भाई सैदा ने बोला गुरुजी मैं तो केवल दरिया पार करवाता हूं आप तो भवसागर पार करवाते हैं। आज मैंने आपको दरिया के किनारे पहुंचाया है जब मेरी मौत हो जाए तो, आप बिना मेरे कर्मों को देखे मुझे भी भवसागर से पार कर देना।इतना कहकर सैदा गुरु के चरणों में गिर गया। गुरु साहिबान ने भाई सैदा को उठाया और गले से लगाते हुए कहा कि केवल तुझे ही नहीं तेरी पांच पीडियो को मैंने तार दिया।
गुरु की महिमा कभी बयान नहीं की जा सकती गुरु कभी भी किसी की मेहनत मजदूरी नहीं रखते। वह अपने शिष्य का प्यार देखते हैं और अपने शिष्य के पास दौड़े चले जाते हैं। अब हमारा भी फर्ज बनता है कि गुरु के कहे हुए वचनों का पालन करें और सब के साथ सेवा भाव रखें। प्रेम में इतनी ताकत है कि गुरु भी खुद उससे मिलने चला आता है।
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