सबसे बड़ा प्रेमी इस दुनिया में वह है,जो अपने प्रियतम में हर समय खोया रहता है। कभी भी अपनी प्रीतम की याद से जुदा नहीं होना चाहता। ऐसा प्रेम कोई कोई ही कर सकता है।हर कोई प्रेम कहता जरूर है पर असल प्रेम उसे कभी हुआ ही नहीं, क्योंकि जिस प्रेमी को कुछ ना कुछ पाने की लालसा रहती है. वह कभी सच्चा प्रेमी हो ही नहीं सकता।
सबसे बड़ा प्रेमी तो वह है जो सिर्फ और सिर्फ देना ही जानता हो जो, अपने प्रियतम में ही सब कुछ पहचानता हो, जिनको सच्चा प्रेम हो जाता है उसे फिर इस दुनिया में किसी भी चीज की जरूरत नहीं रहती । ना धन दौलत की, ना मान सम्मान की, ना सखियों सहेलियों की, ना रिश्ते नातों की वह सिर्फ और सिर्फ अपने प्रियतम में ही खो जाना चाहता है।
उनको दुनिया में सबसे अच्छा अपना प्रियतम ही लगता है। उनको लगता है कि मेरे प्रियतम के जैसा इस दुनिया में कोई भी नहीं है। वह अपना सब कुछ अपने प्रियतम को मान लेता है इसीलिए तो वह सबसे बड़ा प्रेमी बन जाता है ।
इसे हम एक कहानी के जरिए समझने की कोशिश करते हैं ।
पक्षी का प्रभु के प्रति प्रेम
पुराने समय की बात है एक फकीर था जो अपने आप को फरिश्ता समझता था। एक बार उसके मन में ख्याल आया कि मैं फरिश्ता हूं, खुदा मुझसे खुश है ; मुझसे बढ़कर उसका कोई और प्यारा नहीं। उसने अर्ज की. “या खुदा ! जो मुझसे भी ज्यादा तेरा प्रेमी है, मुझसे ज्यादा तेरा ध्यान करता है, मुझे बता। मैं उनसे मिलना चाहता हूं।” खुदा ने कहा, “ए फकीर ! बड़े-बड़े प्रेमी हैं।” फकीर बोला, “कोई एक बताओ।” खुदा ने कहा कि आदमी तो क्या मैं एक पक्षी बताता हूं। वह अमुक पेड़ पर रहता है। उसके पास जा। फकीर ने अर्थ की कि मैं उसकी बोली नहीं समझता। खुदा ने कहा, “तुम जाओ ! मैं तुझे शक्ति देता हूं कि तू उसकी बोली समझ लेगा।”
खैर फकीर वहां गया, पक्षी को बैठे देखा। फकीर ने उससे कहा, कोई खुदा की बात सुना।” पक्षी बोला, “ ए फकीर ! मुझे फुर्सत नहीं। मैंने इतनी बात भी तेरे से इसलिए की है कि तू मेरे प्रीतम के पास से आया है।” फकीर ने कहा, “तू क्या काम करता है जिससे तुझे फुर्सत नहीं है ?” पक्षी ने जवाब दिया, “मैं दिन-रात परमात्मा का ध्यान करता हूं, सिर्फ एक तकलीफ है।” फकीर ने पूछा कि वह कौन सी तकलीफ है ? उसने कहा, “यहां से कुछ दूर एक चश्मा है, जहां रोज जाकर मुझे पानी पीना पड़ता है।” फकीर ने पूछा कि चश्मा कितनी दूर है ? पक्षी ने कहा कि यह मेरे सामने जो गेहूं का खेत है, इससे आगे हैं। फकीर बोला, “यह तो कोई दूर नहीं है।” इस पर पक्षी ने कहा, “मैं तुझे क्या बताऊं ? मेरे लिए तो इतना भी मुश्किल है, क्योंकि सिमरन छोड़कर मुझे वहां जाना पड़ता है।” फकीर ने कहा कि अगर कोई सेवा हो तो बता। पक्षी ने कहा, “बस चश्मे को मेरे पास ला दो।” फकीर ने कहा कि यह तो नहीं हो सकता। “फिर और कोई सेवा नहीं है” कहकर पक्षी सिमरन करने लग गया।
मतलब तो यह है कि जो खुदा के आशिक हैं, उनका उसके साथ इतना प्यार होता है कि पल-पल उनका ध्यान खुदा में ही लगा रहता है । जिस तरह अगर कोई कौवा समुंद्री जहाज पर बैठ जाए और जहाज चल पड़े तो वह कहीं और नहीं जा सकता। नीचे समंदर है, ऊपर आसमान। उड़ता है और वापस जहाज पर ही आ बैठता है, और कोई जगह नहीं है। इसी तरह खुदा के आशिकों का भी जहाज के कौवे जैसा हाल होता है।
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