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गुरु अंगद देव जी की परीक्षा

भाई लहना एक समृद्ध परिवार से थे उन्होंने बहुत ही शानदार कपड़े पहने हुए थे जैसे ही उन्होंने देखा श्री गुरु नानक देव जी खेत में खड़े हैं वह तुरंत उनके पास पहुंच गए। गुरुजी के पास तीन मिट्टी से सनी घास की गठरिया रखी हुई थी जिन्हें वह अपने घर पशुओं के चारे के लिए ले जाना चाहते थे। बारिश की वजह से गठरिया बहुत गंदी थी। गुरुजी ने अपने पुत्रों से गठरिया को घर तक पहुंचाने के लिए कहा। पुत्रों ने मना कर दिया कहां कि घर जाकर किसी सेवादार को भेज देंगे । भाई लहना यह सब देख रहे थे, उन्होंने बिना किसी हिचक के तीनों गठरिया को उठाया और उन्हें गुरु जी के घर पहुंचाया।

रेशम के शानदार कपड़े पहने हुए भाई लहना घर पर जब गंदी गठरिया को माता सुलखनी ने देखा तो उन्हें मेहमान की यह दशा अच्छी ना लगी। परंतु गुरु जी ने उन्हें समझाया कि  कपड़ों पर कीचड़ नहीं लगी बल्कि केसर लगी हुई है। माता सुलखनी ने मुड़कर देखा तो कीचड़ से सने हुए कपड़े केसर के रंग से रंग गए थे। और इस तरह भाई लहना गुरु जी की पहली परीक्षा में पास हो गए थे।

बारिशों के दिनों में श्री गुरु नानक देव जी के घर का एक हिस्सा बारिश के कारण गिर गया।श्री गुरु नानक देव जी ने अपने पुत्रों को दीवार दोबारा से बनाने को कहा परंतु उन्होंने यह कहकर मना कर दिया कि सुबह राजमिस्त्री से दीवार  बनवा लेंगे। भाई लहना वहां खड़े हुए यह सब देख रहे थे । उन्होंने बिना किसी झिझक के दीवार बनानी शुरू कर दो।

जब दीवार खड़ी हो गई तो गुरुजी ने कहा फिर से बनाओ दीवार सही नहीं बनी। भाई लहना ने तुरंत दीवार तोड़ दी और फिर से दीवार बनानी शुरू कर दी। जैसे ही दीवार खड़ी हुई गुरु जी ने फिर कहा दीवार सही नहीं बनी है फिर से बनाओ। वहीं पर उनके पुत्र श्री चंद जी खड़े थे उन्होंने कहा और दीवार बनाने का कोई फायदा नहीं है कल राज मिस्त्री से बनवा देंगे। परंतु भाई लहना बोले मैं दास हूं और मेरा काम अपने मालिक की इच्छा पूर्ण करना है ना कि आदेश पर सवाल उठाना। और इस तरह भाई लहना गुरु जी की दूसरी परीक्षा में भी पास हो गए।

एक दिन गुरु नानक जी ने अपने अनुयायियों से कहा कि मेरे संग यात्रा भी चलोगे। सभी लोग खुशी से बोले, बिल्कुल गुरु जी हम आपके साथ जरूर चलेंगे। थोड़ी देर चलने के बाद बादल गरजने लगे। कुछ भगत यह सोचकर वापिस चले गए कि भारी वर्षा होने वाली है बाकी बचे हुए भक्तों गुरुजी के पीछे पीछे चलते रहे।

थोड़ी देर बाद संगत ने देखा कि रास्ते में तांबे के सिक्के पड़े हैं उन्होंने सोचा, भाइयों यह तो गुरु जी का प्रसाद है उठाओ इनको और चलो अपने अपने घर। कुछ भगत तांबे के सिक्के लेकर वापस चले गए और बाकी गुरु जी के पीछे-पीछे चलते रहे।थोड़ी देर पश्चात रास्ते में चांदी के सिक्के पड़े थे संगत के लोगों ने सोचा, गुरु जी ने हमें यह फल दिया है चलो इनको लेकर वापस चलते हैं। ऐसा सोच कर कुछ और भगत सिक्के लेकर वापस घर चले गए।

अब सिर्फ दो व्यक्ति थे जो गुरुजी का अनुसरण कर रहे थे। थोड़ी दूर जाने के पश्चात शाम होने लगी। सुनसान जगह पर अजीब सी आवाजें आ रही थी। गुरुजी ने कहा  ठहरो, वहीं पर एक शव कफन से ढका हुआ था उसमें से बहुत बुरी तरह  दुर्गंध आ रही थी। गुरुजी ने कहा इस प्रसाद को चख लो। एक व्यक्ति नाक सिकोड कर पीछे हो गया। दूसरा व्यक्ति आगे बढ़ा और शव को गौर से देखने लगा। गुरुजी ने उससे पूछा कि क्या देख रहे हो, वह व्यक्ति बोला गुरु जी मैं यह सोच रहा हूं कि प्रसाद कहां से शुरू करूं। परंतु जैसे ही उसने कफन को हटाया, शव गुरु जी के प्रसाद में बदल गया। बदबू की जगह प्रसाद की महक आने लगी। दोस्तों क्या आप जानते हो वह व्यक्ति कौन था? वह व्यक्ति भाई लहना थे जो आगे चलकर सिखों के दूसरे गुरु श्री गुरु अंगद देव जी बने।

“शिक्षा : इस सुंदर साखी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जो गुरु के ऊपर पूर्ण विश्वास करता है, गुरु उसे एक दिन अपने जैसा ही बना देता है। हमारे जीवन में जब कोई दुख आता है तो हम गुरु को दोष देना शुरू कर देते हैं। जीवन के इस दुख को हमें अपनी परीक्षा समझना चाहिए और गुरु के ऊपर पूर्ण विश्वास रखकर इस परीक्षा पे खरा उतरना चाहिए।

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