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गुरु नानक देव जी के चरण पानी ने चूमे


ताजुद्दीन ईरान की पहाड़ी इलाकों से गुजर रहे थे उन्होंने देखा कि एक फकीर जो भारतीय लग रहे थे बड़ी शांति से बैठे थे और उन्हीं के साथ एक और व्यक्ति बैठे थे जो रबाब बजा रहे थे। उस फकीर के माथे पर एक दिव्य चमक थी और वह दिल को और आत्मा को शांति देने वाले ईश्वर के लिए शब्द गा रहे थे।

ताजुद्दीन ने उस फकीर सलाम किया। बाबा नानक ने उसके सलाम का जवाब दिया। ताजुद्दीन बोला मन तो कर रहा है यहां थोड़ी देर बैठा हूं लेकिन मेरी नमाज का वक्त हो रहा है। मुझे पहले ही काफी देर हो गई है। मैं यहां से जाता हूं और ताजुद्दीन वहां से जाने लगे तभी बाबा नानक ने ताजुद्दीन से कहा, तुम थोड़ी देर यहां बैठो। श्री गुरु नानक देव जी की वाणी में कुछ ऐसी कशिश थी कि ताजुद्दीन वहीं पर बैठ गया।

थोड़ी देर बाद वह उठकर फिर जाने लगे, बाबा नानक ने फिर कहां बैठ जाओ कहां जा रहे हो ? थोड़ी देर और बैठो। ताजुद्दीन बोला, हजरत यह मेरे नमाज का वक्त है इसलिए मैं पानी ढूंढ रहा हूं ताकि स्नान  करके में नमाज पढ़ सकूं। श्री गुरु नानक देव जी बोले ओ अल्लाह के बंदे ईश्वर की दया पर कभी शंका नहीं करते। तुम्हें यहीं पर भरपूर पानी मिलेगा।

बाबा नानक जी की वाणी से प्रभावित होकर ताजुद्दीन वहीं पर बैठ गए और वह अपनी नमाज तक पढ़ना भूल गए। उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे गुरुजी के सामने उनके लिए नमाज पढ़ रहे हो। ताजुद्दीन एकदम बोला, ओ मैं तो भूल गया कि मेरे साथ नमाज पढ़ने वाले मेरा इंतजार कर रहे होंगे।

गुरु जी ने भाई मरदाना को ताजुद्दीन की तरफ इशारा करते हुए कहा,मरदाना जी, इस भाई को नमाज पढ़ने के लिए पानी चाहिए इन्हें आप पानी दे दो। भाई मरदाना बोले गुरु जी मैं तो खुद पानी पीने की सोच रहा था। मुझे भी बहुत प्यास लग रही है। आपकी भक्ति में विघ्न ना पड़े इसलिए मैंने आपको पहले नहीं कहा। लेकिन मेरी नजरें भी पानी की तलाश कर रही थी। कृपया करके आप हमें पानी दें। मैं भी प्यास से तड़प रहा हूं।

गुरुजी ने आसमान  की तरह देखा और कुछ शब्द मुस्कुराते हुए कहे, ओ मरदाना जी तुम ईश्वर के कवि हो, इस धरती ने ईश्वर का गुणगान तुमसे सुना है इस बात में कोई शक नहीं है यह धरती तुम्हें जरूर पानी देगी। बाबा नानक ने मरदाना जी से कहा यह लो मेरी छड़ी और उस पत्थर को हटाओ ईश्वर जरूर दया करेंगे। भाई मरदाना ने पत्थर को हटाने के लिए गुरुजी की छड़ी का इस्तेमाल किया।

भाई मरदाना ने वहां से पत्थर हटाया तभी वहां पानी का चश्मा निकल आया। पानी ताजुद्दीन और भाई मरदाना की ओर से बहता हुआ वहां पहुंचा जहां श्री गुरु नानक देव जी चरण थे। ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वह पानी श्री गुरु नानक देव जी के चरण छूने के लिए उनके पास जा रहा है। पानी ने गुरुजी के चरण छुए और वापिस वहीं पर जाकर बहने लगा जहां से वह निकला था। थोड़ी देर में जहां से पानी निकला था वहां पानी का कुंड बन गया, उसको देख कर ताजुद्दीन बाबा नानक जी के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और उनकी आंखों में आंसू बह रहे थे गुरु जी बोले अपनी नमाज पढ़ो।ताजुद्दीन नमाज पढ़ने लगा।

नमाज पढ़ने के बाद ताजुद्दीन गुरु जी से बोला कि गुरु जी आप भी आओ और नमाज पढ़ो। गुरुजी ताजुद्दीन से बोले, लोग गलतफहमी में जी रहे हैं इन्हें गलतफहमीओं की वजह से वह भटक गए हैं। सच्चाई यह है कि मैं अपनी नमाज मक्का अरेबिया में पढ़ूंगा। ताजुद्दीन गुरुजी से बोला कि गुरुजी शाम ढल रही है अब ज्यादा वक्त नहीं बचा है। मक्का तो यहां से हजारों मील दूर है अभी आप इस वक्त वहां नहीं जा सकते। मुझे यह बात बिल्कुल भी समझ नहीं आ रही कि आप यह बात क्यों कह रहे हो कि मैं अपनी नमाज मक्का अरेबिया में ही जाकर पढूंगा।

ताजुद्दीन अभी गुरुजी के जवाब का इंतजार कर ही रहे थे कि गुरुजी के चेहरे पर एक दिव्य रोशनी नजर आने लगी। ऐसा लगा मानो हजारों रोशनीया उनकी तरफ आ गई हो। ताजुद्दीन ने अपनी आंखें रोशनी के प्रकाश की वजह से बंद कर ली थोड़ी देर के पश्चात किसी ने ताजुद्दीन को हिलाया तो ताजुद्दीन एकदम बोला, मैं कहां हूं।

बाबा नानक जी और भाई मरदाना और ताजुद्दीन अकसम मस्जिद मे अरेबिया के सबसे बड़े शहर बैतूल मुकद्दस मे आ पहुंचे थे। गुरुजी ताजुद्दीन के साथ खड़े थे और उनके चेहरे पर मुस्कान थी। ऐसा लगता था गुरुजी की मुस्कान ताजुद्दीन के उस प्रश्न के लिए थी जिसमें उसने कहा था कि अरेबिया तो बहुत दूर है और इतने कम समय में वहां ना पहुंचने पर नमाज पूरी नहीं हो सकती है । इस्लाम में अल्लाह की पूजा या सजदा करने के मुख्य पांच वक्त हैं। शाम की नमाज को अक्सा नमाज कहा जाता है। अक्सा वह शहर है जिस स्थान पर मुस्लिम विश्वास करते है।

जब गुरु जी वहां पहुंचे तो आसपास के लोग वहां पर लोग इकट्ठा होने लगे। सभी लोग गुरु जी को नमस्कार और ऐसे अभिनंदन कर रहे थे कि जैसे वह गुरु जी को पहले से जानते हैं। गुरुजी हर किसी को जवाब देते हुए कह रहे थे करतार भली करेंगे। ताजुद्दीन लिखते हैं कि बाद में मुझे पता लगा कि करतार भली करेंगे  का क्या मतलब है। करतार अल्लाह का ही एक नाम है। गुरुजी वहां एक कब्रिस्तान में तीन  दिन रहे। वहां पर सभी लोग करतार शब्द का उपयोग कर रहे थे। ऐसा मालूम होता था मानो सभी और करतार का नाम गूंज रहा हो। ताजुद्दीन यह देख कर हैरान हो रहे थे कि सभी लोग बाबा नानक जी से ऐसे मिल रहे हैं जैसे वह उन्हें कब से जानते हो।

इब्राहिम वाहिदजू नाम का एक व्यक्ति आया जो गुरुजी का मुरीद हो चुका था। भक्त बन चुका था। गुरुजी उस व्यक्ति का हाथ पकड़ कर बोले, इस स्थान में ईश्वर करतार की गूंज सुनी है, यह स्थान अनंत समय तक आबाद रहेगा। तुम यहां के रखवाले हो, यहां का सारा काम संभालते हो जो तुमने यहां देखा है लोगों तक पहुंचाओ। प्रितपाल जी लिखते हैं कि उस स्थान पर एक बहुत ही भव्य मंदिर मस्जिद की आकृति में बनाया गया जहां आज भी इब्राहिम वाहिदजू के वंशज उनका कार्य आगे बढ़ा रहे हैं। आज उस स्थान को हुजरा नानक शाह कलंदर के नाम से जाना जाता है। इस शहर में दो जनजातियां हैं दोनों ही जातियां गुरुजी का अनुसरण करती हैं। और जपजी साहिब का पाठ करती हैं। उस व्यक्ति को करतार का नाम फैलाने का आदेश देकर गुरुजी भाई मरदाना और ताजुद्दीन के साथ मक्का यात्रा की तरफ चल पड़े ।

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