श्री गुरु नानक देव जी सुलतानपुर से होते हुए अमीनाबाद मे भाई लालो के घर पहुंचे।भाई लालो ईश्वर के परम भक्त हैं और बढ़ाई का काम करते थे । गुरु जी को देखते हैं भाई लालो उनके सम्मान में खड़े हो गए। भाई लालू ने गुरु जी से कहा कि संतो कृपया अपना परिचय दें। गुरुजी ने कहा भक्त जी हम तो परदेसी हैं। गुरुजी की बात सुनकर भाई लालो ने कहा महाराज परदेस तो यह सारा संसार है। मैं तो आपका पूर्ण परिचय चाहता हूं। क्योंकि आपका रूप देख कर मुझे ऐसा लगता है कि इस संसार में आप से बड़ा कोई संत नहीं है। कृपया आप मेरी बातों को अन्यथा ना लें, और अपने बारे में पूरा बताएं।
गुरुजी बोले हम तो टाल रहे हैं परंतु आप भी तो सब को जानकर अनजान बन रहे हैं, जब तुम जानते हो तो क्यों पूछ रहे हो। भाई लालो ने कहा अगर मैं गलती नहीं कर रहा तो क्या आप श्री गुरु नानक देव जी तो नहीं है। मैंने सुना है कि कलयुग में श्री गुरु नानक देव जी ने अवतार लिया है। बाबा नानक बोले कि अगर तुम जानते हो तो फिर क्यों पूछ रहे हो। भाई लालो ने जवाब दिया कि गुरु जी हमारी बुद्धि तुच्छ हैं। बाबा नानक बोले इस प्रकार जान और पहचान लेने वालों की बुद्धि कभी भी तुच्छ नहीं हो सकती।
इसके बाद भाई लालो गुरु जी के चरणों में पड़ गए और उनका दिल से आदर सत्कार किया।गुरुजी ने कहा कि लालो हमारा तुम्हारा एक वचन हुआ था।भाई लालो ने कहा गुरुजी दिलों की बातें दिलों में ही रहने दो। यह सुनकर बाबा नानक मंद मंद मुस्कुराए। इसके पश्चात भाई लालो रसोई में गए।भाई मरदाना ने गुरु जी से उनके हंसने का कारण पूछा ? भाई मरदाना ने गुरु जी से कहा के भाई लालो सच्चे आदमी लगते हैं। गुरुजी ने कहा मरदाना आप और भाई लालो पहले भी हमारे साथ इकट्ठे रहे थे।
मरदाना ने शंका से पूछा गुरु जी मैंने तो सुना है कि महापुरुष कभी जन्म नहीं लेते। गुरुजी ने कहा, जो भक्त होते हैं उनके मन में दर्शनों की लालसा होती है जिस कारण में जन्म लेते हैं।जन्म लेने के बिना दर्शन की अभिलाषा पूरी नहीं होती। जिसकी वजह से वे जन्म लेते हैं। जन्म लेने के बिना दर्शनों की अभिलाषा कभी पूरी नहीं होती। और जो निर्गुण के उपासक होते हैं और इच्छा रहित होते हैं उनका जन्म नहीं होता।
इतने में भाई लालो ने भोजन परोस दिया भाई लालो बोले हे महाराज भोजन ग्रहण करें।भाई लालो की रूखी सूखी रोटी देखकर भाई मरदाना मुंह बनाने लगे परंतु जब उन्होंने भाई लालो की रोटी खाई तो उन्हें ऐसा लगा मानो उसे अमृत से बनाया गया। गुरु जी ने भाई लालो के घर 3 दिन तक ठहरे और उसके पश्चात वहां से जाने को तैयार होने लगे।भाई लालो ने उनसे कुछ और दिन रुकने का निवेदन किया और कहा कि मेरे यहां कम से कम एक महीना गुजारे। जब भाई लालो नहीं माने तो गुरु जी ने भाई मरदाना से कहा मरदाना, भाई लालो का भी हम पर अधिकार है। इसलिए हमें उसका निवेदन मानना ही होगा। भाई मरदाना ने कहा कि ठीक है गुरुजी अगर आप कहे तो इस बीच मैं कुछ दिन तलवंडी जाकर वापस लौट आता हूं। गुरुजी ने भाई मरदाना को आज्ञा दे दी और भाई मरदाना तलवंडी चले गए और गुरु जी भाई लालो के घर ही रुक गए।
अब गुरु जी के गांव में 15 दिन बीत गए थे इसी दौरान गांव के क्षत्रिय जिसका नाम मलिक भागो था और वह बहुत घमंडी था। उसने ब्रह्मभोज का आयोजन किया और सभी वर्णों के पुरुषों को को निमंत्रण दिया। एक ब्राह्मण से श्री गुरु नानक देव जी ने पूछा क्यों भाई क्या हो रहा है गांव में, ब्राह्मण ने बताया कि मलिक भागो ने बहुत बड़े ब्रह्मभोज का आयोजन किया है सभी वर्णों के महापुरुष वहां पहुंच रहे हैं। आपको भी चलना चाहिए।
श्री गुरु नानक देव जी ने कहा कि हम फकीर लोग हैं हम तो यहीं पर संतुष्ट है। उस ब्राह्मण ने गुरु जी से कहा, आपको जरूर चलना चाहिए क्यों क्योंकि बहुत से लोग पहले ही आपके बारे में उल्टा सीधा बोलते हैं अगर आप नहीं चलेंगे तो मालिक भागो भी क्रोधित होगा। गुरुजी ने ब्राह्मण की बात नहीं मानी और भाई लालो के घर ही अपना डेरा जमाए रखा। उस ब्राह्मण में गुरुजी के साथ हुई पूरी बात मलिक भागों को बताई। मालिक भागों ने फिर से ब्राह्मण को गुरु जी को निमंत्रण देने के लिए भाई लालो के घर भेजा, परंतु गुरु जी ने आने से मना कर दिया। ब्राह्मण ने मलिक भागों के कान भरे और उनसे कहा, यह नानक एक क्षत्रिय का पुत्र है और रह एक छोटी जाति वाले के घर में रहा है। छोटी जाति वाले के घर भोजन खाता है लेकिन आपके इस महाभोज में आना नहीं चाहता।
ब्राह्मण की बातें सुनकर मलिक भागों का क्रोध बहुत बढ़ गया और उसने दोबारा से एक आदमी को गुरु जी को लेने के लिए भेजा। वह आदमी गुरुजी के पास जाकर बोला सुनो नानक मालिक बहुत गुस्से में है और तुम्हें बुला रहे हैं। गुरु जी इस बार उसके साथ चलने को तैयार हो गए, अपने साथ उन्होंने भाई लालो को भी ले लिया।
गुरुजी मलिक भागों के घर के घर पहुंच गए। गुरुजी से मलिक भागों ने कहा, नानक मैंने इतना बड़ा ब्रह्मभोज करवाया तुम क्यों नहीं आए ? तुम क्षत्रिय होकर छोटी जाति वाले के घर खाना खाते हो परंतु हमारे यहां आना तुम्हें मंजूर नहीं है ऐसा क्यों ? मलिक भागों में गुस्से में किसी से कहा इन लोगों को खाने को कुछ दे दो। गुरुजी ने पीछे पलट कर देखा पीछे भाई लालो खड़े थे और उनके हाथ में उनकी अपने हाथ से बनाई हुई रोटी थी। नानक में बाएं हाथ में भाई लालो की रोटी पकड़ ली और दाएं हाथ में मलिक भागों की पूड़ी पकड़ ली। जब गुरु जी ने दोनों हाथों से रोटी और पूड़ी को दबाया तो भाई लालो की रोटी से दूध टपकने लगा और मलिक भागों की पूड़ी से खून।
गुरुजी ने वहां बैठे हुए सभी ब्राह्मणों और सिद्ध लोगों से कहा, तुम लोगों ने मनुष्य के लहू का ब्रह्मभोज किया है। मैं तुम को बताता हूं असली ब्रह्मभोज कहां चल रहा है। असली ब्रह्मभोज तो भाई लालो के घर हर रोज चल रहा है क्योंकि भाई लालो की कमाई मेहनत और ईमानदारी की है और मलिक भागों की कमाई बेईमानी और लोगों को सता कर कमाई हुई है। बाबा नानक की बातें सुनकर मलिक भागो लज्जित हो गया और गुरु जी सभी को मेहनत की कमाई का संदेश देकर अपनी अगली यात्रा पर चल पड़े।
शिक्षा : श्री गुरु नानक देव जी की सुंदर साखी से हमें यह शिक्षा मिलती हैं कि हमें जीवन में हमेशा मेहनत की कमाई ही करनी चाहिए। बेईमानी से की गई कमाई का हमें एक ना एक दिन हिसाब देना होता है इसलिए जीवन में हमेशा धोखेबाजी और बेईमानी से दूर रहना चाहिए।
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