Warning: sprintf(): Too few arguments in /www/wwwroot/spiritualstories.in/wp-content/themes/newsmatic/inc/breadcrumb-trail/breadcrumbs.php on line 252

Warning: sprintf(): Too few arguments in /www/wwwroot/spiritualstories.in/wp-content/themes/newsmatic/inc/breadcrumb-trail/breadcrumbs.php on line 252

Warning: sprintf(): Too few arguments in /www/wwwroot/spiritualstories.in/wp-content/themes/newsmatic/inc/breadcrumb-trail/breadcrumbs.php on line 252

Warning: sprintf(): Too few arguments in /www/wwwroot/spiritualstories.in/wp-content/themes/newsmatic/inc/breadcrumb-trail/breadcrumbs.php on line 252

श्री गुरु नानक देव जी और भालू की कहानी

 

 यह साखी वर्ष 1986 एक गांव जो अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम में स्थित है वहां की बात है। एक आर्मी के मेजर अपने क्वार्टर में सो रहे थे तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया। मेजर साहब ने सोचा कि इस समय कौन हो सकता है और दरवाजा खोला। बाहर गांव का मुखिया खड़ा था जिसे वहां के लोग गांव का बूढ़ा कहते थे।उसने मेजर साहब से कहा मेरा बेटा पेट में दर्द के कारण मरा जा रहा है, आप कृपया किसी डॉक्टर को बुला दे।

मेजर साहब ने सोचा कि डॉक्टर को इस समय जगाने से पहले जो कि इस जगह से बहुत दूर थे। मेजर साहब ने कुछ दवाइयां ली और मुखिया के साथ उसके लड़के को देखने के लिए चल पड़े। बीमार बच्चा दर्द से बहुत ज्यादा परेशान हो रहा था। मेजर साहब ने बैग में से दर्द की कुछ दवाइयां निकाली और उस बच्चे को देने लगे।

बच्चे के साथ ही एक लामा खड़े थे, उसने बच्चे को दवाई लेने से मना कर दिया। मेजर साहब यह देखकर दुविधा में आ गए लेकिन वह कुछ नहीं कर सकते थे क्योंकि उस लामा का उस गांव में बहुत बड़ा रुतबा था, और सभी उनकी बात मानते थे।

उसके पश्चात उस लामा ने नानक नानक नाम का उच्चारण करना शुरू कर दिया और वह हाथ में एक अगरबत्ती लेकर बच्चे की तरफ गए और फिर से कुछ मंत्र पढ़ने लगे। इसके पश्चात उन्होंने मेजर साहब को इशारा किया कि अब बच्चे को दवाई दे दो। मेजर साहब ने उस बच्चे को दवाई दे दी लेकिन मेजर साहब लामा के मुंह से नानक नानक नाम का उच्चारण सुनकर हैरान रह गए क्योंकि वह समझ नहीं पा रहे थे कि पंजाब से हजारों किलोमीटर दूर इस दुर्गम पहाड़ पर कोई नानक नाम कैसे जान सकता है।

मेजर साहब ने बड़ी उत्सुकता से लामा से पूछा, यह जो आप नानक नानक नाम का उच्चारण कर रहे थे वह कौन है ? लामा ने मेजर साहब को बताया कि हम नानक लामा की पूजा करते हैं और वह हमारे लिए गुरु तुल्य हैं। हम उन्हें नानक लामा अमृतसर वाले भी कहते हैं।

गोम्पा जो दौड़दलिंग हिल पर है वहां उन्हें पूजा जाता है। यह माना जाता है कि वे यहां आए थे और इमोशिबू नामक स्थान पर उन्होंने ईश्वर का ध्यान लगाया था।इमोशिबू इस स्थान से 15 किलोमीटर दूर है। लामा ने मेजर साहब को बताया कि नानक लामा अपने शिष्यों के साथ एक पत्थर की शिला पर बैठे थे और ईश्वर का ध्यान कर रहे थे। तभी वहां पर एक जंगली भालू आया और नानक लामा को मारने के लिए उनकी तरफ बढ़ा, परंतु जैसे ही वह गुरु जी की तरह बड़ा, वह पत्थर की शिला जिस पर गुरु जी बैठे थे वह 20 फीट ऊपर हवा में उठ गई। वह भालू कुछ नहीं कर पाया।

जब नानक लामा यहां आए थे  तब मार्च का महीना चल रहा और इसी वजह से आज भी यहां मार्च के महीने में मेला लगता है। उसी पत्थर की शिला के पास से एक नदी बह रही है जिसका रास्ता एक गुफा से होकर निकलता है वहीं पर नानक लामा स्नान करने जाते थे और उस नदी का नाम पंचू है कहां जाता है जिसका मन साफ होता है वही इस गुफा से निकल पाता है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वहां से गुजरने वाला मोटा है या पतला।

उसी स्थान पर एक कुंड है, जिसमें काले और सफेद कंकर भरे हुए हैं। और कुंड का पानी बहुत ही साफ है। यहां के लोग मानते हैं कि अगर आपने उस कुंड के पानी में हाथ डालकर एक कंकर निकाला और अगर वह कंकर सफेद निकला तो आपकी मुराद पूरी हो जाएगी। और अगर काला कंकर निकला तो आपकी मुराद पूरी नहीं होगी। अगर काला और सफेद दोनों रंग के कंकर निकले तो आपकी मुराद अधूरी पूरी होगी। आप जितने भी बार  कोशिश करें अगर आपकी मुराद पूरी होनी होगी तो कंकर हमेशा सफेद निकलेगा।

यह सब बात सुनकर मेजर साहेब लामा के साथ अगली सुबह उस स्थान की तरफ निकले जहां के बारे में लामा ने बताया था। वहां पर उन्हें नानक लामा की निशानी मिली, लामा ने बताया जो आकृति पत्थर पर हैं वह नानक लामा की है और दूसरी उनके शिष्यों की है। इसके बाद मेजर साहब उस कुंड पर पहुंचे जिसके बारे में उन्हें लामा ने बताया था। मेजर साहब ने सोचा क्यों ना मैं यह पूछूं कि श्री गुरु नानक देव जी यहां आए थे। मेजर साहब ने कुंड में हाथ डालकर यह सोचा हे परमपिता बताओ क्या आप यहां आए थे और एक कंकर उठाया। वह कंकर सफेद था यानी वहां के लोगों के अनुसार सफेद कंकर निकलना इस बात का सही होने का प्रमाण था।

 मेजर साहब ने सोचा कि इस स्थान पर जो दुर्गम जगह पर है गुरुद्वारे का निर्माण तो नामुमकिन है। क्योंकि मेजर साहब जिस स्थान पर खड़े थे वहां तक आने के लिए घने जंगल में से होकर आना पड़ता था। और उस जंगल में भयंकर जंगली जानवर थे यहां तक की खून चूसने वाली जोक भी उनके शरीर से चिपक गई थी। पर सोच नेक हो तो सब कुछ अच्छा होता है। मेजर साहब की मेहनत रंग लाई और 24 मार्च 1987 यह वही महीना था जिस मे गुरु जी इस स्थान पर आए थे। उस पवित्र माह में वहां श्री गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश किया गया और संगत को लंगर करवाया गया। हम जानते हैं इस स्थान पर जाना बहुत कठिन है लेकिन जब भी आपको इस स्थान के नजदीक जाने का मौका मिले तो दर्शन करने जरूर जाना चाहिए।

शिक्षा: सच्चे संत जहां भी जाते हैं उनके खुशबू वहां अपने आप ही फैल जाती हैं। जैसे फूल कभी किसी को अपने पास नहीं बुलाते, वैसे ही सच्चे संत जहां भी जाते हैं उनकी तरफ लोग अपने आप ही खींचे चले आते हैं। और सच्चे संत ही हमेशा अपने शिष्यों को सही ज्ञान देते हैं।

दोस्तों मेरा यह लेख अच्छा लगा हो तो कृपया व्हाट्सएप और फेसबुक पर शेयर जरूर कीजिए, आप अपनी प्रतिक्रिया हमें कमेंट करके भी दे सकते है।

आपके प्यार और स्नेह के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *