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गुरु नानक देव जी और भूमिया चोर की साखी

गुरु नानक देव जी और भूमिया चोर की साखी


एक बार की बात है, श्री गुरु नानक देव जी जीवो का उद्धार करते हुए एक नगर में पहुंचे । उस नगर में एक बहुत बड़ा जमीदार रहता था जिसको सभी लोग भूमिया जी कहते थे । वह जमीदार तो था लेकिन साथ में बहुत बड़ा चोर था । वह अपने घर में रोज लंगर लगाता था, जो भी वह चोरी करके लाता था सब लंगर में खर्च कर देता था ।

भूमिये ने पूरे गांव में हिदायत दे रखी थी जो भी  बाहर से साधु संत आए उसे मेरे घर भेज देना । भूमिये ने अपने घर में एक धर्मशाला बनवा रखी थी, उस धर्मशाला में आठों पहर  लंगर चलता था। जो भी उसके यहां आता लंगर करके ही जाता ।

गुरु नानक देव जी जब उस नगर में पहुंचे तो उन्होंने एक स्थान पर अपना आसन लगा लिया, नगर के लोगों ने उनको माथा टेका और कहा कि गुरु जी कृपया आप यहां ना बैठे । गुरुजी ने कहा कि हमने यहां बस्ती देखी और अपना आसन लगा लिया ।

लोगों ने गुरु नानक देव जी से कहा कि इस नगर के जमींदार ने हमें आदेश दे रखा है कि जो भी साधु संत यहां आए उसे उसके घर भेज दिया जाए । गुरु जी ने उनको कहा कि चलो हम भी उनके घर चलते हैं । गुरु नानक देव जी वहां से उठकर भूमिये  के घर चले गए ।

भूमिये को जब यह पता चला तो उसने आकर गुरुजी को माथा टेका । थोड़ी देर के बाद भूमिये ने आकर गुरु जी से प्रार्थना की के लंगर तैयार है कृपया आप ग्रहण करें । गुरुजी ने भूमिये से पूछा कि भाई तू काम क्या करता है । तुमने आठों पहर लंगा लगा रखा है, तुम्हारा गुजारा कैसे होता है ।

गुरुजी का रूहानी चेहरा देख कर भूमिये का दिल पहले से ही निर्मल हो गया था, उसने सोचा गुरुजी से छुपाने का कोई फायदा नहीं है । भूमिये ने गुरु जी को कहां की मैं जमीदार के साथ-साथ बहुत बड़ा चोर भी हूं । जो कुछ भी चोरी करता हूं सब लंगर में ही खर्च कर देता हूं ।

गुरुजी ने उसकी बात सुनकर कहा कि भाई फिर तो हम आपका भोजन नहीं ग्रहण कर सकते यह सुनकर भूमिया बहुत ही निराश हुआ और उसने गुरु जी के चरण पकड़ लिए और बोला, गुरु जी मैं आपके हर आदेश का पालन करूंगा बस एक बार मेरा भोजन कबूल कर लो, गुरु नानक देव जी ने कहा यह लूटमार छोड़ दो और इमानदारी से कीरत करो यह बात सुनकर भूमिया बोला कि गुरु जी यह काम तो मेरे से छोड़ा नहीं जाएगा । इसके अलावा अगर आप कोई भी हुकुम दोगे मैं जरूर मानूंगा ।

गुरु नानक देव जी ने कहा कि अगर तुम मेरी यह बात नहीं मान सकते तो इस बात के बदले में तुम्हें तीन बातें माननी होगी । भूमिया इस बात के लिए सहमत हो गया । गुरु नानक देव जी ने कहा कि पहली बात यह है कि तुमने कभी झूठ नहीं बोलना, भूमिये ने जवाब दिया सत्य वचन, तब गुरुजी ने कहा दूसरी बात यह है कि तुम कभी गरीबों का शोषण नहीं करोगे, और तीसरी बात यह है जिसका नमक खाया होगा उसके साथ कभी धोखा नहीं करोगे । भूमिये ने गुरुजी की तीनों बातें मानने का वचन दिया ।

गुरुजी ने भूमिये से कहा कि जो भोजन  तुम हमें  कराओगे  वह अपनी मेहनत से कमा कर लाओगे भूमिये ने इस बात के लिए भी गुरुजी को हामी भर दी ।

भूमिया जंगल में गया और वहां से लकड़ियां काटकर बाजार ले गया और उसको बेचकर जो भी पैसे मिले, उन पैसों का राशन लेकर उसने गुरुजी के लिए लंगर तैयार किया और गुरुजी को करवाया । गुरुजी लंगर खाकर तृप्त हो गए और उन्होंने भूमिये को आशीर्वाद दिया कि आपका कल्याण जरूर होगा ।

गुरु नानक देव जी के जाने के पश्चात भूमिये को लंगर को चलाने के लिए पैसों की जरूरत पड़ी । उसने सोचा कि गरीबों का शोषण तो करना नहीं है फिर क्या करूं । बहुत सोचने के बाद उसने राज महल में चोरी करने की योजना बनाई । उसने सोचा राजमहल में बहुत कुछ मिल जाएगा इसलिए उसने राजकुमारों की तरह  हीरे रत्नों से जड़ित कपड़े पहने और आधी रात को राज महल की तरफ चल दिया ।

राज महल के पास पहुंचकर द्वारपालों ने उसे रोका और पूछा, तुम कौन हो और कहां जा रहे हो । भूमिये को गुरु नानक देव जी से किया हुआ वादा याद आ गया कि सच बोलना है । यह सोचकर उसने द्वारपालों से कहा कि मैं चोर हूं। द्वारपालों  ने उसके लिबास को देखा और सोचा कहीं यह कोई राजकुमार तो नहीं अगर हमने इसको अंदर नहीं जाने दिया तो कल राजा हम को नौकरी से निकाल देगा । यह सोचकर द्वारपालों ने उसे अंदर जाने दिया ।

भूमिया अंदर जाकर सोचने लगा कि अब राजा का खजाना ढूंढा जाए, यह सोचकर वह ढूंढता हुआ राजा के खजाने वाले कमरे तक पहुंच गया जहां राजा रानियों के आभूषण और हीरे रखे हुए थे, भूमिये ने सारा कीमती सामान एक गठरी में बांध लिया ।वहां भूमिये ने एक बर्तन देखा जिसमें चूर्ण की तरह कोई चीज रखी हुई थी भूमिये को समझ में नहीं आया कि यह क्या चीज है इसलिए उसने उंगली में लगाकर अपने मुंह में डालकर देखा कि यह क्या चीज है तो उसे नमक का स्वाद आया, जब उसको नमक का स्वाद आया तो उसे गुरु नानक देव जी को दिया हुआ दूसरा वचन याद आ गया कि जिस का नमक खाओ उसके साथ कभी धोखा नहीं करना । भूमिया सोच में पड़ गया और हीरे जवाहरात से भरी हुई गठरी को वहीं रखकर बाहर चला गया ।

अगले दिन राजा जब खजाने के कमरे में आया तो उसने देखा कि सारा सामान बिखरा पड़ा है और एक गठरी वहां पड़ी है । राजा ने वहां सब समान देखा लेकिन सब कुछ वहां पूरा था कोई भी चीज चोरी नहीं हुई थी । राजे ने हैरान होकर सोचा कि जरूर यहां कोई चोर आया था लेकिन समान कोई भी नहीं लेकर गया ।

राजे ने द्वारपालों को बुलाया और पूछा कि यहां रात को कौन आया था । द्वारपालों ने राजा को कहा कि एक आदमी यहां आया था जिसने बहुत अच्छा लिबास पहना हुआ था । हमने उससे पूछा कि तुम कौन हो और क्या करने आए हो तो उसने कहा कि मैं चोर हूं और चोरी करने आया हूं लेकिन हमने उसके लिबास को देखा तो हमें लगा कि यह हमसे मजाक कर रहा है  हमने सोचा कि यह जरूर कोई राजकुमार है इसलिए हमने उसको अंदर जाने दिया । राजा जी उसके अलावा यहां और कोई नहीं आया ।

राजा ने द्वारपालों से कहा कि उस आदमी की तलाश करो, 3 दिन तक चोर की तलाश होती रही लेकिन उसका कुछ पता नहीं चला । राजा ने सैनिकों को हुक्म दिया कि नगर में जो भी गुंडे बदमाश है सब को पकड़कर पता करो कि चोर कौन है । राजा के सैनिक नगर से जितने भी बदमाश गुंडे या जिन पर उनको शक हुआ सब को मारने पीटने लगे यह बात पूरी जगह फैल गई ।

भूमिये को भी यह बात पता चल गई कि लोगों को मारा पीटा जा रहा है । भूमिये को गुरु नानक देव जी को दिया हुआ तीसरा वचन याद आ गया कि गरीबों का शोषण नहीं करना । उसने सोचा इन सबको मेरी वजह से ही मारा पीटा जा रहा है यह सोचकर उसने राजा के पास जाकर प्रार्थना की और कहा कि इन सब को छोड़ दो, आपके राजमहल में मैं ही चोरी करने आया था । राजा के हुकुम पर सभी लोगों को छोड़ दिया ।

राजा ने भूमिया को अपने पास बिठा लिया और पूछा कि अगर तुम चोर हो तो मेरे खजाने के कमरे में सारा सामान बांधकर क्यों छोड़ दिया ।

भूमिये ने राजा को कहा कि राजा जी मुझे पूरा गुरु मिला है और उनका हुकुम था कि जिसका नमक खाना उसके साथ कभी धोखा मत करना ।राजा ने भूमिये से पूछा कि कौन है तुम्हारे गुरु ? भूमिये ने कहा कि श्री गुरु नानक देव जी उन्होंने मुझसे तीन वचन लिए थे जिनको मैं पूरा करने की कोशिश कर रहा हूं, भूमिये ने राजा को पूरी बात बताई । राजा ने भूमिये की बात सुनी और उसकी तारीफ की और कहा बलिहार हूं तुम पर जिसने अपने गुरु के वचनों को अच्छी तरह से निभाया है ।

तेरा गुरु धन्य है जिसने तुझे ऐसा उपदेश दिया और धन्य हो तुम जिसने गुरु के वचनों को दृढ़ता से निभाया है । अपनी जान खतरे में डालकर भी तुमने गुरु के वचनों को निभाया है ।

भूमिये ने इसके बाद चोरी बिल्कुल ही छोड़ दी और राजा को भी एक धर्मशाला बनाने की प्रार्थना की । भूमिये की बात सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ और उसको अपने वजीरो के बीच में स्थान दिया । इसके बाद राजा भी गुरु नानक देव जी का भगत बन गया ।

शिक्षा : श्री गुरु नानक देव जी की साखी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि गुरु जो भी वचन कहते हैं उनका हमें दृढ़ता से पालन करना चाहिए क्योंकि संत महात्मा इस दुनिया से हमें निकालने के लिए ही आते हैं । अगर हम उनके कहे हुए वचनों का पालन करेंगे तो ही इस दुनिया से मुक्ति पा सकेंगे ।

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