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मोह माया से छुटकारा कैसे पाएं

मोह माया से छुटकारा कैसे पाएं


एक बार की बात है कि भगवान बुद्ध किसी गांव में प्रवचन दे रहे थे वह अपनी बात को समाप्त करते हुए बोले के मनुष्य के सबसे बड़े दुख का कारण है कि अपने आप को किसी के साथ बांधना, जहां भी मोह होता है बंधन होता है वहां दुख अपने आप ही उत्पन्न हो जाता है इसलिए अपने बंधन को जान कर और इससे निकलने का प्रयास करना चाहिए । यह बात कह कर महात्मा बुद्ध सभी को आशीर्वाद देकर अपने आश्रम वापस लौट गए ।

अगले दिन गौतम बुद्ध को एक व्यक्ति मिलने आया उसने गौतम बुद्ध को प्रणाम किया और कहां कल मैंने आपका प्रवचन सुना, आपकी बातें मेरे अंदर तक उतर गई हैं । आपकी बातें सुनकर मैं सभी बंधन तोड़ आया हूं, मोह माया को त्याग आया हूं अब मैं आपकी शरण में आना चाहता हूं । महात्मा बुध उसकी बात सुनकर मुस्कुराए और बोले वत्स मुझे यह बताओ कि तुमने कौन-कौन से बंधन तोड़े और किसका मोह त्यागा ।

वह व्यक्ति बोला, मेरे घर में मेरे बूढ़े माता-पिता और मेरी पत्नी और एक छोटा बच्चा है । मेरी पत्नी अक्सर बीमार रहती है उसको कष्ट में देखकर मैं हमेशा यही सोचता था  कि वह मर जाए तो उसके सभी दुख और परेशानियां दूर हो जाए उसकी वजह से मैं हमेशा परेशान रहता हूं। कल मैंने आपके वचन सुने तो मुझे समझ में आ गया कि मेरे परिवार ही मेरा बंधन है मेरी परेशानियां और दुख का कारण है । अगर मैं इस बंधन में  रहा तो कभी भी सत्य की खोज नहीं कर पाऊंगा इसलिए मैं सभी को त्याग कर आपकी शरण में आया हूं ।

महात्मा बुद्ध ने उसको कहा कि क्या सचमुच तुम सभी बंधन तोड़ के आए हो देख लो पीछे कोई बंधन रह तो नहीं गया । उस व्यक्ति ने उत्तर दिया कि मैं सभी कुछ छोड़ आया हूं और अब आगे बढ़ना चाहता हूं ।

महात्मा बुद्ध ने कहा अगर यह बात है तो तुम यहीं रुको कल मैं तुम को बताऊंगा कि क्या करना है । वह व्यक्ति वही रुक गया ।

अगले दिन महात्मा बुद्ध ने उसे कहां की तुम्हें पूर्व दिशा की तरफ जाना है वहां तुम्हें एक गांव नजर आएगा, गांव के बाहर ही एक साधिका का घर है वह तुम्हें कोई वस्तु देगी जिसको लेकर तुम्हें मेरे पास आना है । वह व्यक्ति चल पड़ा कुछ दूर चलने पर उसे बहुत गर्मी महसूस होने लगी और प्यास भी लगने लगी वह सोचने लगा कि अगर इस समय मैं घर में होता तो इस तरह गर्मी में नहीं भटकना पड़ता । थोड़ी दूर और चलने पर उसे भूख भी लगने लगी लेकिन वह बिल्कुल बंजर और वीरान इलाका था उसके दिमाग में फिर आया कि अगर मैं घर में होता तो अपनी पत्नी के हाथ का स्वादिष्ट खाना खाता पता नहीं  बुद्ध ने मुझे क्यों इतनी दूर भेजा ।

चलते-चलते कुछ समय बाद उसको एक गांव नजर आया । गांव के बाहर ही एक घर बना हुआ था। वह घर के बाहर पहुंचा और उसने दरवाजा खटखटाया । दरवाजे को एक साधिका ने खोला उसके चेहरे की आभा देखने वाली थी । वह व्यक्ति उसको देखकर मंत्रमुग्ध हो गया साधिका ने उसको देख कर कहा मुझे पता है आपको गौतम बुद्ध ने भेजा है आप अंदर आइए ।

वह व्यक्ति अंदर आकर हाथ मुंह धो कर चटाई पर  बैठ गया । साधिका ने उसके सामने भोजन की थाली रखी, उस व्यक्ति को बहुत भूख लगी थी इसलिए वह जल्दी से भोजन करने लग गया। अचानक उसकी नजर साधिका के पैरों पर पड़ी वह उसके खूबसूरत पैरों को देखता ही रह गया तभी साधिका ने उसका ध्यान भंग किया और कहा, जिसको महात्मा बुद्ध के चरणों में स्थान मिल जाता है उसको किसी और के पैर देखने की जरूरत नहीं पड़ती । वह व्यक्ति उसकी बात सुनकर बहुत शर्मिंदा हुआ और नजरें झुका कर चुपचाप भोजन करने लगा ।

भोजन करने के बाद साधिका ने उसको कहा कि आप बहुत दूर से आए हो, आराम कर लो मैं आपको पंखा कर देती हूं वह व्यक्ति चटाई पर लेट गया और अपनी आंखें बंद कर ली।साधिका उसको पंखा करने लगी लेकिन लेटने के बाद भी उस व्यक्ति को चैन नहीं आया वह धीरे से अपनी आंखें खोल कर चोर नजरों से साधिका को देखने लगा। उसके दिमाग में यह ख्याल आया कि यह स्त्री कितनी सुंदर है अगर यह मेरी पत्नी होती तो मेरा जीवन स्वर्ग बन जाता ।साधिका ने उसके मन की बात को समझ लिया और बोली इस शरीर में कुछ नहीं रखा है यह तो सिर्फ मास मज्जा और हड्डियों का जोड़ है जो व्यक्ति इसके आकर्षण से मुक्त हो जाता है वही व्यक्ति सत्य को प्राप्त करता है । वह व्यक्ति उसकी बात सुनकर घबरा गया और जल्दी से उठ बैठा और बोला अब मुझे महात्मा बुद्ध के पास चलना चाहिए इसलिए आप मुझे वह सामान दे दे जो बुद्ध ने कहा था । साधिका ने उसकी बात सुनकर मुस्कुराते हुए कहा  बुद्ध ने आपको जिस काम के लिए भेजा था वह पूरा हो गया है । साधिका की बात उस व्यक्ति को समझ में नहीं आई वह दरवाजे की तरफ चल पड़ा । दरवाजे के पास पहुंचकर वह एक पल के लिए रुका और पलट कर बोला कि क्या आप अंतर्यामी हो, आपने मेरे मन में जो था वह कैसे समझ लिया । बुध की कृपा से मैं मोह माया से ऊपर उठ चुकी हूं  इसलिए भावनाओं से निर्लिप्त और किसी के चेहरे को देखकर उसके मन में उठने वाले विचारों को समझ लेती हूं । उसकी बातें सुनकर वह व्यक्ति बहुत लज्जित हुआ उसे सोचा कि जिस स्त्री ने मेरा इतना आदर सत्कार किया मैं उसके बारे में इतना गलत सोचता रहा उसके पश्चात यह व्यक्ति  बुद्ध के आश्रम की तरफ लौट गया ।

आश्रम में पहुंचकर वह व्यक्ति महात्मा बुद्ध के चरणों में गिर पड़ा और बोला मुझे क्षमा करें मैंने बहुत बड़ा पाप किया है । महात्मा बुद्ध ने मुस्कुराते हुए कहा कि मैंने इसलिए तुम्हें साधिका के पास भेजा था ताकि तुम अपने आपको पहचान सको।अब तुम मुझे यह बताओ कि क्या तुम सचमुच मोह माया के बंधनों को त्याग चुके हो ? उस व्यक्ति ने कोई जवाब नहीं दिया वह नजरें झुका कर खड़ा रहा ।  बुद्ध ने कहा कि बाहरी बंधनों और मोह को त्यागने से हम बंधन मुक्त नहीं होते दरअसल बंधन और मोह हमारे अंदर होता है  ।

तुमने अपने परिवार को छोड़ दिया और सोचा कि तुम बंधन मुक्त हो गए हो लेकिन जैसे ही तुम्हें मौका मिला तुम्हारे अंदर का मोह जाग उठा और इसी वजह से आज तुम अपने आप को पापी समझ रहे हो । उस व्यक्ति ने बुद्ध के आगे हाथ जोड़ दिए और बोला कि मुझे क्षमा करें आप सही कह रहे हैं मैं सिर्फ अपनी पत्नी से पीछा छुड़ाना चाहता था क्योंकि वह बहुत बीमार रहती है  । मेरी कमाई भी कुछ ज्यादा नहीं है इसलिए अपने परिवार का पालन पोषण भी ढंग से नहीं कर पाता शायद इसलिए मैं अपने परिवार से पीछा छुड़ाना चाहता था लेकिन अब मैं समझ गया हूं कि मेरा परिवार ही मेरा सत्य है और उनका पालन पोषण ही मेरा दायित्व है और यही मेरा असली कर्म  है ।

महात्मा बुद्ध ने उसको कहा कि मैं जो कुछ भी कहता हूं अपने अनुभव के आधार पर ही कहता हूं, लोग मेरी बात सुनते तो है लेकिन उसका पालन अपने मतलब और स्वार्थ के आधार पर करते हैं इसलिए मोह माया कामना इच्छा वासना क्रोध को लोग बाहर की तरफ तलाश करते हैं जबकि यह चीजें हमारे अंदर है  । हम दूसरों को देखकर तरह-तरह की कामना करने लगते हैं । कामना से इच्छा जन्म लेती है इच्छा से वासना पैदा होती है और वासना की पूर्ति न होने पर क्रोध उत्पन्न होता है यह सब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं  । क्रोध के लिए हम हमेशा दूसरे को जिम्मेवार ठहराते हैं लेकिन क्रोध का स्रोत हमारे अंदर हैं  । तुम चाहोगे तो क्रोध आएगा, तुम नहीं चाहोगे तो क्रोध नहीं आएगा । इसी तरह बंधन बाहर नहीं होते हमारे मन में होते हैं  । हम मन के कारण ही  किसी से बंध जाते हैं और मन के कारण ही दुख उठाते हैं लेकिन जो व्यक्ति इन बातों की गहराई में पहुंच जाता है वह दुखों से हमेशा हमेशा के लिए मुक्त हो जाता है  । वह व्यक्ति  बुद्ध की बात समझ गया और उनका आशीर्वाद लेकर वापस अपने घर चला गया।

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