श्री गुरु गोबिंद सिंह जी और कीड़े वाला सांप
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी एक बार शिकार के लिए जंगल में गए । कुछ दूर चलने के बाद गुरुजी अपने घोड़े से उतरकर एक पेड़ के पास जाकर रुक गए, पेड़ के आसपास बहुत बड़ी बड़ी झाड़ियां थी. कुछ देर के पश्चात झाड़ियों के अंदर से एक बहुत बड़ा सांप निकला। जब गुरुजी के सेवकों की नजर उस सांप पर पड़ी तो वे उसे मारने के लिए खड़े हो गए । लेकिन जब गुरु गोबिंद सिंह जी ने यह देखा तो उन्होंने सेवकों को सांप को मारने से मना कर दिया।
गुरुजी ने कहा कि इस सांप को मारो मत यह तो परेशान होकर हमारी शरण में आया है, इसको हमारे पास आने दो जब सेवक सांप से दूर हट गए तो सांप गुरुजी के चरणों के पास गया, गुरुजी ने अपने पैर की जूती उतार दी और अपने पैर से सांप का सिर सहलाने लगे। जैसे ही गुरु जी के पैर का अंगूठा सांप के सिर के ऊपर लगा, उस सांप के दो टुकड़े हो गए उसमें खून के साथ-साथ कीड़े भी निकलने लगे।
यह सब देख कर सभी सेवक हैरान रह गए. एक सेवक ने हिम्मत करके गुरु जी से पूछा, गुरु जी यह कैसे हो सकता है, मरे हुए सांप में तो कीड़े हो सकते हैं लेकिन जिंदा सांप में कीड़े कैसे हो सकते हैं ? गुरु जी कृपया आप इस रहस्य से पर्दा उठाएं।
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने कहा, यह सांप पिछले जन्म में ढोंगी साधु था. यह लोगों को पाखंड दिखाकर अपने साथ कर लेता था। यह लोगों से अपनी सेवा करवाता था और दान के नाम पर बहुत सारा पैसा लेता था और उन पैसों से ऐश की जिंदगी व्यतीत करता था। एक बार अपनी यात्रा के दौरान श्री गुरु नानक देव जी इसके गांव पहुंच गए,गांव का नाम लाधेवाली था।
गांव में पहुंचकर भाई मरदाना ने श्री गुरु नानक देव जी से कहा कि गुरु जी मुझे बहुत प्यास लगी है, गुरुजी ने कहा कि भाई मरदाना थोड़ा आगे चलते हैं वहां पर एक रेत का टीला आएगा, उस टीले के पास एक साधु रहता है. तुम जाओ उसके पास जाकर पानी पीकर आओ।
गुरुजी से आज्ञा लेकर भाई मरदाना उस साधु के घर पहुंचे, भाई मरदाना ने उस साधु से पानी पीने की इच्छा प्रकट की, साधु उस समय आराम कर रहा था. साधु ने कहा थोड़ी देर रुक जाओ अभी मेरे सेवक आते हैं वह तुम्हें पानी पिला देंगे। उनके आने तक तुम्हें इंतजार करना पड़ेगा. साधु अपनी जगह से बिल्कुल भी नहीं हिला, वह तो लोगों के पैसे पर ऐश करता था।
भाई मरदाना जी वहां पर रुक कर इंतजार करने लगे, लेकिन काफी देर इंतजार करने के बाद भी उस साधु का कोई भी चेला नहीं आया। काफी देर इंतजार करने के बाद भाई मरदाना गुरुजी के पास वापस पहुंचे. गुरुजी के पास पहुंच कर भाई मरदाना जी ने सारा वृतांत गुरु जी को सुनाया, गुरुजी भाई मरदाना की बात सुनकर खुद उस साधु के डेरे पहुंचे।
गुरु नानक देव जी जब उस साधु के डेरे में पहुंचे तो उन्होंने देखा कि वह साधु अभी भी आराम कर रहा है. गुरु नानक देव जी ने साधु को इस तरह आराम करते देखकर कहा कि कैसे सांप की तरह आराम कर रहे हो. अगर तुम उठकर हमारे चेले को पानी पिला देते तो तुम्हारा क्या चला जाता।
जब गुरु नानक देव जी के यह वचन साधु ने सुने तो वह एकदम उठ कर बैठ गया और गुरु जी को देखने लगा. गुरु नानक देव जी के चेहरे को देखते हैं वह गुरु जी के चरणों में गिर गया क्योंकि वह समझ गया था कि गुरु जी कोई आम इंसान नहीं है, और जो वचन गुरु जी ने कहे हैं वह कभी खाली नहीं जाएंगे।
साधु ने गुरु जी से हाथ जोड़कर कहा कि गुरु जी मैं जानता हूं आपके कहे हुए शब्द खाली नहीं जाएंगे, आप मुझे बताएं मेरा उद्धार कब होगा. गुरुजी ने साधु से कहा कि हम अपने छठवें रूप में आकर तुम्हारा उद्धार करेंगे. यह वचन बोलकर भाई मरदाना और गुरुजी आगे चले गए।
कुछ सालों के पश्चात उस साधु के मौत हो गई. मृत्यु के पश्चात उस साधु का अगला जन्म सांप के रूप में हुआ। गांव में जितने भी उसके चेले थे वह सब कीड़ों के रूप में उसको अंदर ही अंदर खा रहे थे। यह वचन बोलकर श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने कहा कि अब साधु और उसके चेलों का उद्धार हो गया।
इसी तरह अगर कोई साधु संत अपना ढोंग दिखाकर लोगों को बेवकूफ बनाकर उनके पैसों पर ऐश करता है. कोई भजन सिमरन नहीं करता और ना ही अपने चेलों को भजन सिमरन करना सिखाता है, उन सब का ऐसा ही हाल होता है।
शिक्षा : श्री गुरु नानक देव जी की सुंदर साखी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें हमेशा सच्चे गुरु की तलाश करनी चाहिए क्योंकि सच्चा गुरु ही हमें सही रास्ता दिखा सकता है. अगर गुरु सच्चा और पूर्ण नहीं होगा तो हमारी हालत भी वैसी ही होगी जैसे इस साखी में साधु के सेवकों की हुई।