जीवन में दुख का कारण
एक बार की बात है, एक आदमी महात्मा के पास गया और उनसे कहां के मैं इतना दुखी किस लिए हूं क्या आप मेरे दुख का कारण बता सकते है ? महात्मा ने कहा कि अपने आपको चीजों से जोड़ लेना और उन चीजों के प्रति आकर्षित होकर दौड़ना ही तुम्हारा सबसे बड़ा दुख का कारण है । वह व्यक्ति ने महात्मा की बात सुनकर कहा कि महात्मा जी आपका बहुत धन्यवाद आपने तो मेरी समस्या का बड़ी आसानी से समाधान कर दिया । मैं इतने दिनों से अपनी समस्या का समाधान ढूंढ रहा था । यह शब्द कहकर वह व्यक्ति वहां से चल दिया ।
महात्मा ने उसको जाते हुए देख कर कहा कि जाने से पहले पूरी बात तो सुन लो लेकिन वह व्यक्ति ने जवाब दिया के महात्मा जी मैं आपका इशारा समझ गया और समझदार आदमी को इशारा ही काफी होता है । यह कहकर वह आदमी चला गया ।
एक महीने के पश्चात वह आदमी फिर वापिस महात्मा के पास आया । इस बार वह आदमी पहले से भी ज्यादा दुखी लग रहा था । वह व्यक्ति आकर महात्मा के पैरों में गिर गया और उनसे कहा कि महात्मा जी मैंने आपके कहे अनुसार ही किया लेकिन मुझे सुख नहीं मिला । अब तो मेरा दुख और परेशानी पहले से भी ज्यादा बढ़ गया है ।
महात्मा ने उससे पूछा तुमने क्या किया ? उस आदमी ने जवाब दिया कि मुझे अपने परिवार और अपने दोस्तों और अपने रिश्तेदारों से दुख मिल रहा था इसलिए मैंने उन सभी को छोड़ दिया । सब कुछ छोड़ने के बाद कुछ दिन तो मुझे अच्छा लगा परंतु कुछ दिनों के बाद मुझे धीरे-धीरे सब की याद आने लगी । अपने माता-पिता, अपनी पत्नी, अपने बच्चे यहां तक की मुझे अपने दुश्मन भी याद आने लगे । इतना दुखी तो मैं उनके पास रहने पर भी नहीं था जितना कि उनसे दूर होकर दुखी हो गया । इसलिए आज मैं घर वापस जाने के लिए निकला था लेकिन जाने से पहले सोचा आप से पूछ लूं कि आपने मुझे इतनी गलत सलाह क्यों दी ?
जीवन में दुख का कारण
महात्माओं उसकी तरफ देख कर मुस्कुराए और बोले तुम अपने घर परिवार दोस्तों और रिश्तेदारों को छोड़कर भाग गए । यह तुम्हारी गलतफहमी थी कि तुम उनको छोड़कर भाग आए हो असलियत में तो तुम उनको अपने साथ लेकर ही भाग रहे थे । उस आदमी ने महात्मा की बात सुनकर कहा कि महात्मा जी मैं तो अपने साथ किसी को लेकर नहीं आया ।
महात्मा ने कहा के जो चीजें हमें दुख देती हैं वह कहीं बाहर नहीं होती और यहां तक जो चीजें हमें सुख देती हैं वह भी कहीं बाहर नहीं होती । यह परिवार वाले दोस्त रिश्तेदार यह सब कहां बसते हैं ? यह सब हमारे मन में बसते हैं । जब तुम अपने घर से भागे तो इनको अपने मन में साथ लेकर भागे इसलिए तुम इनसे कहीं दूर नहीं गए । जब यह चीजें तुम्हारे मन में बसी हो वह अगर आस-पास हो तो वह जो दुख देती हैं वह हमें बहुत लगता है लेकिन असल में वह दुख बहुत कम होता है । लेकिन जब हम इन चीजों दूर हो जाते हैं या इनको छोड़ कर भाग जाते हैं तब मन इन चीजों को पाने के लिए फिर से प्रयास करने लगता है और तब यह चीजें बहुत ज्यादा दुख देती है । जैसे तुम्हें दुख हो रहा है ।
उस आदमी ने कहा कि महात्मा जी फिर मैं क्या करूं ? चीजों के साथ रहूं तो दुख चीजों को छोड़ कर जाऊं तो दुख, क्या मैंने सिर्फ दुख उठाने के लिए ही जन्म लिया है ? महात्मा उसकी बात सुनकर जोर से हंसे और कहा यह बात बिल्कुल सच है इस दुनिया में सभी सिर्फ दुख उठाने के लिए ही जन्म लेते हैं । पर यह बात भी बिल्कुल सच है कि दुख के बाद ही सुख है और उसके के बाद फिर दुख हैं । जिन चीजों में हमें सुख नजर आता है थोड़े समय के बाद वही चीजें हमारे दुख का कारण बनती है । ऐसे ही जिन चीजों में हमें दुख नजर आता है वही चीजें कुछ समय बाद हमारे सुख का कारण बन जाती हैं ।
उस व्यक्ति ने कहा, महात्मा जी क्या इस सुख-दुख के मायाजाल से निकलने का कोई रास्ता नहीं है ? महात्मा ने कहा कि रास्ता तो है अगर तुम इस दुनिया में रहना चाहते हो इन सबके साथ रहना चाहते हो तो तुम्हें एक काम करना होगा । इस दुनिया में ऐसे रहो जैसे तुम इस दुनिया में अकेले हो । सबके साथ रहो लेकिन अकेले रहो । उस आदमी ने कहा कि यह कैसे हो सकता है ?
जीवन में दुख का कारण
महात्मा उस आदमी को अपने साथ एक ऐसी जगह ले गए, जहां पर मेला लगा हुआ था और बहुत भीड़ थी । महात्मा ने उसको कहा ध्यान से देखो क्या तुम यहां किसी को जानते हो ? उस आदमी ने चारों तरफ देख कर कहा कि नहीं यहां तो कोई भी जान पहचान वाला नहीं है । महात्मा ने कहा क्या तुम यहां अकेले हो ? उस आदमी ने जवाब दिया कि हां महात्मा जी मैं अकेला हूं ।
महात्मा ने कहा कि नहीं तुम यहां अकेले नहीं हो । उस आदमी ने कहा हां आप सच कह रहे हो मैं जल्दी से अपने घर जाना चाहता हूं और अपने परिवार वालों से मिलना चाहता हूं वही सब लोग मेरे दिमाग में है । महात्मा ने कहा अब तुम सब कुछ भूल कर अपनी आंखें बंद कर लो और अपना ध्यान यहां होने वाली आवाजों पर लगा दो ।
उस आदमी ने ऐसा ही किया और जैसे ही उसने अपनी आंखें बंद की और सारा ध्यान वहां होने वाली आवाजों पर लगाया उसे एकदम अकेलापन और एकांत महसूस हुआ । उसे ऐसा महसूस हुआ कि वह इतनी बड़ी भीड़ में भी अकेला है । सभी आवाजों पर ध्यान लगाने के कारण किसी भी आवाज का कोई महत्व नहीं रह गया था । बस आवाजे थी और वह था। उसने अपनी आंखें खोली और कहा महात्मा जी यहां तो मैं बिल्कुल अकेला हूं । सब है लेकिन फिर भी कुछ नहीं है ।
महात्मा ने कहा बस इसी तरह अकेला होना है तुम्हें रहो सबके साथ लेकिन भीतर से अकेले रहो । साथ में सब हो लेकिन मन में कोई ना हो । जिसने यह बात सीख ली उसको कभी दुख नहीं होते । उसे चीजें दुख नहीं देती बल्कि वह हर चीज में आनंद की प्राप्ति करता है । उस आदमी को महात्मा की बात समझ में आ गई और वह अपने घर चला गया ।
इस बात को हम लोग कितना समझे ? जिन चीजों को हम हासिल करना चाहते हैं वह चीजें हमें तब तक दुख देती हैं जब तक हम उनको प्राप्त नहीं कर लेते और जब हमें वह चीजें प्राप्त हो जाती हैं तब वह हमें फिर से दुख देती है कि कहीं हमसे वह चीजें छूट ना जाए और जब वह चीजें छूटती हैं तो वही हमारे दुख का कारण बनती है । इनके जाने का दुख बहुत गहरा होता है । जीवन भर हम एक चीज को पकड़ते हैं फिर दूसरी चीज को पकड़ते हैं तीसरी चीज को पकड़ते हैं इस तरह हम पीछे की चीजों को विदा करते रहते हैं । इसी तरह हम सुख को पकड़ते हुए दुख को पकड़ते हुए चलते हैं पर जिसने अकेला रहना सीख लिया परिवार में, समाज में सब कुछ करते हुए आनंद की प्राप्ति करते हैं । सारे कार्यों को करता हुआ सुख से जीता है और आनंद से जीता है ।
शिक्षा : इस आध्यात्मिक कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जीवन में खुश रहने के लिए अपने आपको अंदर से अकेला रखना चाहिए क्योंकि अंदर से अकेला रहने वाला इंसान ही सच्ची और आत्मिक खुशी प्राप्त कर सकता है ।
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