मनुष्य जन्म क्यों मिला है-Motivational story in hindi - spiritualstories

मनुष्य जन्म क्यों मिला है-Motivational story in hindi

मनुष्य जन्म क्यों मिला है
Motivational story in hindi

मनुष्य जन्म क्यों मिला है

एक समय की बात है महात्मा बुद्ध अपने शिष्यों को मनुष्य जन्म के बारे में समझा रहे थे वह कह रहे थे कि इस दुनिया में सबसे कीमती चीज मनुष्य जन्म है जिसे परमात्मा ने हमें किसी खास मकसद के लिए  दिया है लेकिन हम लोग इस अनमोल जीवन को कौड़ियों के दाम नष्ट कर रहे हैं । महात्मा बुद्ध अपने शिष्यों को कहते हैं कि मैं तुम्हें अपनी बात को सही से समझाने के लिए एक लकड़हारे की कहानी सुनाता हूं ।

एक दिन एक राजा जंगल में शिकार करने के लिए गया । राजा शिकार करते करते इतना मगन हो जाता है कि वह रास्ता भूल जाता है । राजा बहुत देर तक रास्ता तलाश करता है लेकिन उसे सही रास्ता नजर नहीं आता । गर्मी का मौसम होने की वजह से राजा बहुत ज्यादा थक जाता है और भूख और प्यास की वजह से उसका बुरा हाल हो जाता है । राजा इधर उधर देखता है तो उसकी नजर एक लकड़हारे पर पड़ती है जो लकड़ियां काट रहा था । राजा लकड़हारे के पास जाता है और उसे कहता है कि मुझे बहुत भूख प्यास लगी है क्या तुम मुझे कुछ खाने के लिए दे सकते हो ? लकड़हारा कहता है हां मेरे पास खाने के लिए है, आप यहां बैठो यहां पास में एक नदी बहती है मैं वहां से आपके लिए पीने के लिए पानी लाता है । 

मनुष्य जन्म क्यों मिला है

राजा कहां बैठ जाता है, लकड़हारा अपनी पोटली में से दो रोटियां और कुछ सब्जी निकालकर राजा को दे देता है और खुद पानी लेने चला जाता है । लकड़हारे ने पानी लाकर राजा को दिया, अब राजा की भूख प्यास और थकावट मिट चुकी थी वह शांत होकर बोला, मैं यहां पास के राज्य का राजा हूं यहां जंगल में शिकार खेलने के लिए आया था लेकिन रास्ता भूल गया क्या तुम मुझे सही रास्ता बता सकते हो ? लकड़हारा राजा को सही रास्ता बता देता है तो राजा उसको कहता है कि तुमने मेरी बुरे वक्त में मदद की है अगर कभी तुम्हें मेरी मदद की जरूरत पड़े तो मेरे पास चले आना । यह बात कह कर राजा वापस चला जाता है ।

कुछ वक्त ऐसे ही गुजर जाता है, धीरे-धीरे जंगल के सभी पेड़ समाप्त हो जाते हैं क्योंकि लकड़हारा जंगल में से पेट काटकर उनको जलाकर कोयले बनाकर बाजार में बेचता था । अब लकड़हारा बहुत परेशान रहने लगा था, अब उसको यह परेशानी खाए जा रही थी के मैं अपने जीवन का निर्वाह कैसे करूंगा तभी उसको राजा की बात याद आई, राजा ने कहा था जब भी तुम्हें मेरी मदद की जरूरत पड़े तो मेरे पास चले आना, यह बात सोच कर लकड़हारा  राजमहल की तरफ चल पड़ा और राजमहल के द्वार पर पहुंचकर सैनिकों को अपने बारे में बताया । सैनिकों ने उसके बारे में जाकर राजा को बताया । राजा को एकदम से उस लकड़हारे के बारे में याद आ गया और उसने तुरंत लकड़हारे को अपने पास बुलाया ।

सैनिक बड़े आदर के साथ लकड़हारे को राजा के पास ले आए । राजा ने लकड़हारे की तरफ देखा तो वह बहुत परेशान लग रहा था । राजा ने उससे उसकी परेशानी का कारण पूछा तो लकड़हारा रोता हुआ राजा के पैरों मे गिर पड़ता है और कहता है कि जिस जंगल से मैं लकड़ियां काट कर अपना गुजारा करता था वह जंगल अब खत्म हो गया है । अब मेरे पास अपने परिवार को पालने का कोई रास्ता नहीं है । लकड़हारे ने राजा को कहा कि आपके राज्य में तो बहुत सारे जंगल है अगर आप मुझे उनमें से कोई जंगल मुझे दे दे तो मेरी परेशानी का हल हो सकता है । राजा ने लकड़हारे को वचन दिया कि तुम्हारी परेशानी का हल हो जाएगा उसके जाने के बाद राजा ने अपने मंत्रियों के साथ विचार किया और यह फैसला किया की दक्षिण दिशा में राजा का एक चंदन के पेड़ों का जंगल है वह इसको दे दिया जाए । राजा ने चंदन के पेड़ों का वह जंगल लकड़हारे के नाम कर दिया और सैनिकों के द्वारा उसको यह खबर पहुंचा दी गई के आज यह जंगल तुम्हारा है ।

मनुष्य जन्म क्यों मिला है

राजा एक दिन अपने महल में बैठा हुआ था कि एकदम उसे लकड़हारे की याद आई, राजा सोचने लगा के अब तो वह लकड़हारा बहुत अमीर हो गया होगा । उसने अपने बड़े-बड़े महल बना लिए होंगे यह सोच कर राजा उसको देखने के लिए चल दिया । राजा जब जंगल में पहुंचता है तो यह देखकर हैरान है जाता है कि वहां कोई भी चंदन का पेड़ नहीं है । राजा अपने सैनिकों से पूछता है कि कहीं तुम मुझे गलत जगह तो नहीं ले आए लेकिन सैनिक कहते हैं कि नहीं महाराज यह वही जगह है जहां चंदन के पेड़ थे ।

राजा और सैनिक उस लकड़हारे को ढूंढने लगते हैं तो थोड़ा आगे कुछ चंदन की लकड़ीयों के बीच में लकड़हारे बैठा नजर आता है जो बहुत ही निराश और परेशान लग रहा था । राजा उसके के पास जाकर पूछता है, तुम इतना परेशान क्यों लग रहे हो, लकड़हारा राजा को देखकर खड़ा हो जाता है और उसको प्रणाम करता है और कहता है कि आपकी कृपा से इतने साल गुजर गए हैं लेकिन अब यह थोड़ी सी लकड़ियां ही बाकी है जो कुछ दिनों में समाप्त हो जाएंगी । मैं यह सोचकर परेशान हो रहा हूं की इसके बाद मैं क्या करूंगा ।

राजा ने उसको कहा, पेड़ तो सारे खत्म हो चुके हैं सिर्फ यह चंदन की थोड़ी सी लकड़ियां है बाकी पेड़ों का तुमने क्या किया ? लकड़हारे ने कहा, मैं रोज पेड़ काटता हूं और उनका कोयला बनाकर बाजार में बेच आता हूं । लकड़हारे की बात सुनकर राजा ने कहा, ओ मूर्ख यह तुमने क्या किया है यह कीमती चंदन की लकड़ी, और तुमने इसको जलाकर कोयला बना दिया है ।

लकड़हारा राजा की बात सुनकर कहता है कि यह चंदन क्या है ? राजा ने कहा काश तुम इसके बारे में जानते होते, अब तुम एक काम करो थोड़ी सी चंदन की लकड़ी लो और उसे बाजार में बेच कर आओ । एक बात याद रखना अब तुमने इसका कोयला नहीं बनाना तभी तुम्हें इसकी कीमत पता चलेगी । लकड़हारा राजा की बात मानकर चंदन की थोड़ी सी लकड़ी लेकर बाजार में बेचने चला जाता है ।

दुकानदार देखता है कि चंदन की लकड़ी एकदम असली है लेकिन लकड़हारा चेहरे से गवार लग रहा है, वह लकड़हारे से पूछता क्या कीमत लोगे इसकी ? लकड़हारा दुकानदार से पूछता है तुम क्या कीमत दोगे इसकी ? दुकानदार कहता है कि एक रुपया, लकड़हारा बौखला कर बोलता है कि एक रुपया, दुकानदार की समझ में आ जाता है कि लकड़हारा इसकी कीमत जानता है । वह बोला अच्छा दो रुपए ले लो । लकड़हारे ने फिर पूछा दो रुपए, अब दुकानदार घबरा जाता है और कहता है अच्छा चार रुपए ले लो । थोड़ी दूर पर खड़ा एक आदमी यह सब देख रहा था उसने लकड़हारे को अपने पास बुलाया और कहां यह दुकानदार तुम्हारी लकड़ियों को कौड़ियों के दाम खरीद रहा है तुम मेरे पास आओ मैं तुम्हें इसके दस रुपए दूंगा ।

जब लकड़हारे ने उस आदमी की बात सुनी तो वह सिर पकड़ कर जमीन पर बैठ गया और रोते हुए कहने लगा कि अब मुझे पता लगा है कि मैंने अनमोल लकड़ियों का कोयला बना कर सारा जंगल खाली कर दिया वह कितनी अनमोल थी । मैंने कितनी बड़ी गलती कर दी है अपने हाथों से ही अपनी किस्मत का सत्यानाश कर लिया है । महात्मा बुद्ध ने अपने शिष्यों से कहा कि तुम्हें उस लकड़हारे पर दया आ रही होगी लेकिन क्या कभी हमने सोचा है ? हम क्या कर रहे हैं हम भी तो उसी लकड़हारे की तरह हैं ।

परमात्मा ने हमें यह चंदन जैसा मनुष्य जन्म दिया है लेकिन हम अपनी वासनाओं, काम क्रोध लालच और मोह माया की अग्नि में जलाकर इस को नष्ट कर रहे हैं जो कि बहुत ही अनमोल है । हमने अपना मनुष्य जन्म अहंकार की अग्नि में जलाकर कोयला बना लिया है लेकिन जो होना था वह हो चुका है अब तो वह बदला नहीं जा सकता । अब जो थोड़े से चंदन के पेड़ बचे हैं मतलब जो जिंदगी बची है उसको सही दिशा में लेकर जाएं और परमात्मा की भक्ति में अपने बचे हुए जीवन को सफल करें ।

शिक्षा : दोस्तों यह मनुष्य जन्म हमें बहुत मुश्किल से मिलता है लेकिन हम अपने जन्म को कौड़ियों के भाव गवा देते हैं लेकिन अब हमें अपने बचे हुए जीवन को सही रास्ता देना है और परमात्मा की भक्ति में लगाना है ताकि हम उस परमात्मा को प्राप्त कर सकें और हमेशा के लिए जन्म मरण के चक्कर से छुटकारा पा सके ।

दोस्तों अगर आपको मेरा यह ब्लॉग अच्छा लगा हो तो कृपया व्हाट्सएप और फेसबुक पर जरूर शेयर कीजिए । अगर आपके अंदर कोई प्रश्न है तो आप मुझसे कमेंट करके भी पूछ सकते हैं ।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top