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गुरु नानक देव जी और पीर खरबूजा शाह
श्री गुरु नानक देव जी संसार में फैले हुए अंधकार को दूर करने के लिए अक्सर यात्राएं करते रहते थे । एक बार गुरुजी सुल्तानपुर लोधी पहुंचे, वहां पर एक पीर अल्लाह दाता था जिसे लोग खरबूजा शाह कहते थे । वही नदी के किनारे जहां आजकल गुरुद्वारा बेर साहिब स्थित है । पीर खरबूजा शाह वही रहते थे ।
इस पीर का खरबूजा शाह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि वह हर आने वाले फकीर को एक खरबूजा भेंट किया करता था । जब वह फकीर का दिया हुआ खरबूजा खा लेता था तो वह पीर उनको कहता था, मेरा खरबूजा मुझे वापस दो । फकीर आगे से जवाब देता था कि मैंने खरबूजा खा लिया अब मैं आपको कैसे वापस करूं ? पीर आगे से कहता था अगर मेरा खरबूजा वापस नहीं कर सकते तो मेरे सामने सिर झुकाऊ । इस तरह वह लोगों को अपने सामने झुकने के लिए मजबूर कर देता था ।
गुरु नानक देव जी और पीर खरबूजा शाह
एक बार श्री गुरु नानक देव जी खरबूजे शाह के पास आकर बैठ गए । खरबूजे शाह ने श्री गुरु नानक देव जी को एक खरबूजा भेंट किया । गुरुजी ने खरबूजा ले लिया और उसके टुकड़े कर दिए । खाने से पहले गुरु जी ने दो टुकड़े उस पीर को भी दिए और उसके बाद सब में बांट दिया और खुद भी वह खरबूजा खाया । जब सारा खरबूजा खत्म हो गया तो पीर ने गुरुजी से कहा, मेरा खरबूजा मुझे वापस करो ।
गुरुजी ने कहा, खरबूजा तो सब ने खा लिया अब तुम्हें खरबूजा कहां से वापस करें ? पीर ने कहा कि अगर मेरा खरबूजा वापस नहीं कर सकते तो मेरे कदमों में अपना सर झुका दो । गुरुजी ने जब पीर की है बात सुनी तो उन्हें यह समझ में आ गया कि पीर मे तो अहंकार भरा हुआ है । गुरुजी ने पीर को कहां के पहले तुमने जो दो टुकड़े खाए हैं उनको वापस कर तो मैं तुम्हें अपना गुरु मान लूंगा और बाकी का खरबूजा भी वापस कर दूंगा । गुरुजी की बात सुनकर पीर को बहुत गुस्सा आया क्योंकि ऐसा सवाल पहले कभी किसी ने नहीं किया था ।
गुरु नानक देव जी और पीर खरबूजा शाह
गुरुजी ने पीर को गुस्से में देख कर कहा कि पहले जाकर नदी में स्नान कर रहा हूं ताकि तुम्हारा मन निर्मल हो जाए उसके बाद तुम्हारा खरबूजा वापस कर देंगे । पीर गुरुजी की बात सुनकर नदी में स्नान करने चला गया । जैसे ही पीर ने नदी में डुबकी लगाई तो उसे पूरे नदी खरबूजे से भरी हुई नजर आई । यह चमत्कार देखकर पीर नदी से बाहर आया और गुरुजी के पास जाकर बोला, इसमें तो मेरा खरबूजा नहीं है ।
गुरु नानक देव जी ने कहा दोबारा जाकर देखो तुम्हारा खरबूजा तुम्हें वही मिलेगा । खरबूजा शाह ने जब दोबारा जाकर देखा तो उसे अपना दो टुकड़े कम वाला खरबूजा नजर आया । वह उस खरबूजे को उठाकर गुरुजी के पास ले आया और गुरु जी से बोला के इसमें दो टुकड़े कम है ? गुरुजी ने कहा, जो संगत ने और मैंने खाया था वह मैंने पूरा कर दिया है बाकी जो दो टुकड़े कम है उसे तुम पूरा करो ।
गुरुजी की बात सुनकर खरबूजा शाह को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह अपना आसन छोड़ कर उठ गया और गुरु जी के कदमों में गिर गया । वह कहने लगा कि गुरु जी मैंने अंत पा लिया । मैं अपनी गलती के लिए माफी चाहता हूं कृपया आप मुझे माफ कर दीजिए । इसके बाद खरबूजा शाह गुरु जी का भगत बन गया । गुरु नानक देव जी ने उसको अकाल पूरक की बंदगी और जरूरतमंदों की सेवा करने का उपदेश दिया ।
गुरुजी जब भी नदी में स्नान करने के लिए जाते थे तो वह पीर गुरुजी का चोला हाथ में लेकर खड़ा रहता था वह अपने हाथों को आगे फैला कर रखता था ताकि गुरुजी का चोला उसके शरीर को छूकर कहीं मैंला ना हो जाए । खरबूजा शाह गुरु जी का इतना बड़ा भक्त हो गया था कि एक दिन उसने कहा, मुझ में अब मेहमान की सेवा करने की हिम्मत नहीं रही इसलिए अब मेरा घर आपका हुआ ।
गुरु नानक देव जी ने कहा कि ना तेरा, ना मेरा सब घर बेघरों के हैं । गुरु जी के वहां से जाने से पहले खरबूजा शाह ने कहा कि आपके दर्शनों के बिना रह पाना अब मुश्किल होगा । यह सुनकर गुरु जी ने बेरी की दातुन जमीन में गाड़ कर वचन किया हमारे दर्शन इस बेरी में से कर लिया करना । पीर ने कहा कि अगर किसी कारणवश यह बेरी का पेड़ टूट गया तो ?
गुरु नानक देव जी ने उसको वचन दिया कि यह बेरी का पेड़ हमेशा रहेगा । कोई भी आंधी तूफान इसका कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा । गुरु नानक देव जी के कहे वचनों के अनुसार आज भी वह बेरी का पेड़ फल देता है ।
शिक्षा : श्री गुरु नानक देव जी की इस साखी से हमें यह शिक्षा मिलती है के कभी भी अहंकार नहीं करना चाहिए क्योंकि अहंकारी का सर हमेशा नीचा होता है।
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