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guru nanak dev ji sakhiyan |
श्री गुरु नानक देव जी और सज्जन ठग
श्री गुरु नानक देव जी एक बार मुल्तान जिले के तोलंबा शहर में जा पहुंचे, जो आजकल पाकिस्तान में है । गांव के बाहर रास्ते में गुरुजी ने एक बहुत बड़ी हवेली देखी । उस हवेली में मुसाफिरों के ठहरने और खाने पीने का बहुत अच्छा इंतजाम किया हुआ था । उस हवेली के एक तरफ मंदिर था और दूसरी तरफ एक मस्जिद थी । हवेली के दरवाजे के बाहर दो सेवक हमेशा खड़े रहते थे । सेवक मुसाफिरों का स्वागत करते थे और हवेली मे रुकने के लिए प्रार्थना करते थे ।
उस हवेली का मालिक सज्जन शेख था जो हमेशा साधुओं जैसे कपड़े पहनता था उसके हाथ में हमेशा एक माला रहती थी । जब मुसाफिर खाने पीने के बाद अपने कमरे में सोने के लिए जाते थे तो वह उनके सामान की तलाशी लेता था जिनके पास कीमती सामान होता था उनको वह मार कर कुएं में फेंक देता था और उनका कीमती सामान लूट लेता था । अगले दिन सुबह सज्जन शेख फिर पूजा पाठ में लग जाता था । माला हाथ में पकड़ कर ऐसे बैठता था, जैसे कोई बहुत बड़ा साधु हो ।
श्री गुरु नानक देव जी और सज्जन ठग
जब गुरु जी और भाई मरदाना जी हवेली के पास पहुंचे तो दोनों सेवकों ने उनका स्वागत किया और हवेली के अंदर ले जाकर कमरे में बिठाया । गुरु नानक देव जी के चेहरे पर अद्भुत चमक और तेज देखकर सेवकों ने यह अंदाजा लगाया कि यह मुसाफिर बहुत धनवान है । सेवकों ने जाकर सज्जन शेख को बताया । सज्जन भी खुद गुरुजी के कमरे में उनसे मिलने के लिए आया । श्री गुरु नानक देव जी के चेहरे पर अद्भुत चमक देखकर वह सोचने लगा कि यह कोई हीरे जवाहरातो के सौदागर है । सज्जन बहुत खुश हुआ और उसने मन ही मन सोचा सुबह तक इनका सारा कीमती सामान मेरा हो जाएगा । उसके बाद सज्जन गुरु जी के चरणों के पास बैठ गया और चापलूसी भरी बातें करने लगा । वह यह जानना चाहता था कि गुरुजी के पास क्या-क्या कीमती समान है ।
जब श्री गुरु नानक देव जी ने उसका नाम पूछा तो उसने कहा, मैं सबका सेवक और सज्जन हूं । हिंदू भाई मुझे सज्जन मल कहते हैं और मुसलमान भाई मुझे सज्जन शेख कहते हैं । सेवक रात के समय गुरु नानक देव जी और भाई मरदाना के लिए स्वादिष्ट खाना बना कर लाए लेकिन असलियत मे खाने में जहर था । गुरुजी को इस बात का भलीभांति ज्ञान था, उन्होंने कहा आज कुछ खाने का मन नहीं है। भाई मरदाना भी समझ गए थे इसलिए उन्होंने पहले भी सोचा हुआ था कि अगर गुरुजी खाएंगे तो ही मैं खाऊंगा । सज्जन शेख और उसके सेवकों ने बहुत कोशिश की गुरु जी और भाई मरदाना जी को खाना खिलाने की लेकिन वह कामयाब नहीं हुए ।
श्री गुरु नानक देव जी और सज्जन ठग
जब सज्जन शेख का यह दांव नहीं चला तो वह गुरुजी को एक सुंदर कमरे में ले गया जहां सुंदर और मुलायम बिस्तरे बिछे हुए थे वहां जाकर उसने गुरुजी से कहा कि आपको सारा दिन की थकावट होगी आप कृपया यहां पर आराम करें । यह कहकर सज्जन जाने लगा, गुरुजी फर्श के ऊपर ही समाधि लगा कर बैठ गए और कहा, हम तो फकीर हैं हमें नरम बिस्तरों की जरूरत नहीं है । हम यहां नीचे ही ठीक हैं । हमें परमात्मा ने जिस काम के लिए यहां भेजा है हमें वह करना है, अभी आराम करने का समय नहीं आया है । आप जाओ और आराम करो ।
सज्जन शेख ने अपने सभी सेवकों को बुलाया और सभी आपस में सलाह करने लगे के गुरुजी का कीमती सामान कैसे लूटा जाए । सभी मिलकर गुरु जी और भाई मरदाना जी को मारने का तरीका सोचने लगे । सज्जन ठग अपने कमरे में सोने के लिए चला गया । वह अभी कुछ सोच ही रहा था के उसे गुरुजी के कमरे से कीर्तन की आवाज आने लगी । सज्जन ठग उठा और गुरुजी के कमरे के बाहर जाकर खड़ा हो गया । उसने कमरे के अंदर देखा तो उसे गुरुजी शब्द गान करते हुए दिखाई दिए, उनके माथे पर बहुत तेज चमक थी । भाई मरदाना जी रबाब बजा रहे थे ।
उसके बाद गुरु जी द्वारा गाया हुआ शब्द सुनकर सज्जन ठग कांपने लगा और उसकी आंखों में आंसू आ गए । वह अंदर जाकर गुरु जी के चरणों में गिर गया । सज्जन रोता हुआ गुरु जी से बोला कि मुझे माफ कर दो गुरुजी, मेरे ऊपर दया करो, मैं बहुत बड़ा पापी हूं । मुझे बख्श दो । बहुत देर तक सज्जन ठग गुरु जी के पैर पकड़ कर रोता रहा । कुछ समय के बाद गुरु जी ने उसके सर पर हाथ रखा और कहां उठ भाई सज्जन । सज्जन का उठने का मन नहीं हो रहा था क्योंकि जो आनंद उसे गुरु जी के चरणो में आ रहा था वैसा उसे पहले कभी नहीं महसूस हुआ था इसलिए वह गुरुजी के कदमों में ही पड़ा रहा ।
कुछ समय के पश्चात सज्जन उठा और हाथ जोड़ कर बैठ गया । उसकी आंखों में आंसू अभी भी बह रहे थे, गुरुजी का शब्द सुनकर उसके अंदर की सारी बुराई साफ हो गई थी । वह पश्चाताप से भर गया था फिर उसने गुरु जी से अर्ज की के मेरे सभी पापों को आप क्षमा कर दे । श्री गुरु नानक देव जी ने कहा, भाई सज्जन माफी तो तुम्हें करतार से ही मिल सकती है । रास्ता मैं तुम्हें बता देता हूं ।
सज्जन ने कहा कि मैंने बहुत गुनाह किए हैं, मुझे इससे मुक्ति कैसे मिलेगी ? श्री गुरु नानक देव जी ने कहा, जो भी पैसा तुमने लूटपाट करके इकट्ठा किया है वह सभी तुम गरीबों में बांट दो । दूसरा काम तुम यह करो ईमानदारी और हक हलाल की कमाई करो और अपना गुजारा करो । सज्जन ने ऐसा ही किया उसने सारी धन-संपत्ति गरीबों में बांट दी । सज्जन अब नाम से ही नहीं काम से भी सज्जन बन गया । सज्जन अब गुरुजी का शिष्य बन गया और वाहेगुरु वाहेगुरु जपने लगा ।
शिक्षा : श्री गुरु नानक देव जी की सुंदर साखी से हमें यह शिक्षा मिलती है के हमें जीवन में हमेशा मेहनत और हक हलाल की कमाई ही करनी चाहिए क्योंकि मेहनत की कमाई मे जो खुशी मिलती है वह बेईमानी की कमाई में नहीं और मालिक भी इससे खुश होता है।
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