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Guru nanak dev ji ki shiksha |
दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम
भाई बचन सिंह जो गुरु नानक देव जी का बहुत बड़ा भक्त था । गुरु नानक देव जी हमेशा यह कहते थे कि अपनी कमाई का दसवां हिस्सा भलाई के कामों में खर्च करना चाहिए । गुरु नानक देव जी के उपदेश के अनुसार भाई बचन सिंह अपने घर के बाहर लंगर लगाता था । उसके लंगर में सभी तरह के लोग आते थे और भोजन करते थे । बहुत समय से भाई बचन सिंह लंगर लगा रहा था । गुरु नानक देव जी की कृपा के कारण उसका कारोबार बहुत अच्छा चल रहा था जिसकी वजह से उसकी संपत्ति बढ़ती जा रही थी ।
एक दिन भाई बचन सिंह लंगर में लोगों को खाना खिला रहा था तभी खाना खाते हुए एक गरीब आदमी ने आवाज लगाई के मुझे थोड़ी सी दाल मिलेगी ? भाई बचन सिंह ने उसकी बात सुनकर बड़े ही अभिमान से कहा कि हां क्यों नहीं जितनी आपको चाहे ही उतनी मिलेगी । तुमने जितना भी खाना खाना है खाओ मेरे पास किसी भी चीज की कमी नहीं, मैं रोज बहुत सारे लोगों को खाना खिलाता हूं । रोज हजारों की तादाद में लोग मेरे यहां खाना खाते हैं लेकिन मेरे यहां खाना कभी खत्म नहीं होता । पूरे गांव में मेरे जैसा कोई भी नहीं है जो इतने लोगों को खाना खिलाता हो, अगर आज मैं यह लंगर बंद कर दूं तो इस गांव के बहुत सारे लोगों को खाना भी नसीब नहीं होगा और लोग भूखे मर जाएंगे ।
दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम
भाई बचन सिंह लंगर की सेवा तो जरूर करता था लेकिन इस सेवा के साथ-साथ उसके अंदर घमंड भी पैदा हो गया था । भाई बचन सिंह का यह घमंड समय के साथ साथ बढ़ता ही जा रहा था ।
एक दिन भाई बचन सिंह सो रहा था कि उसे एक सपना आता है और सपने में उसे श्री गुरु नानक देव जी मिलते हैं और उसको कहते हैं चलो भाई आज हमने तुम्हें कहीं लेकर जाना है । यह शब्द बोल कर गुरुजी भाई बचन सिंह को एक ऊंचे पहाड़ पर ले गए जिस पर सिर्फ बर्फ ही बर्फ थी । ऊंचे पहाड़ पर बर्फ की वजह से बहुत ठंड थी जिसके कारण भाई बचन सिंह को बहुत ठंड लग रही थी । भाई बचन सिंह ने ठंड से कांपते हुए कहा कि गुरु जी मुझे बहुत ज्यादा ठंड लग रही है । कृपया करके मुझे यहां से ले चलो, नहीं तो इतनी ठंड में मैं मर जाऊंगा ।
श्री गुरु नानक देव जी ने मुस्कुराते हुए उसको कहा कि मैं तुमको अभी यहां से ले चलता हूं लेकिन पहले तुम उस पत्थर के ऊपर से बर्फ हटाओ और उस पत्थर को थोड़ा सा टेढ़ा करो, भाई बचन सिंह ने ठंड से कांपते हुए उस पत्थर के ऊपर से बर्फ को हटाया और थोड़ा सा टेढ़ा किया तो उसने देखा पत्थर के नीचे बहुत सारी चीटियां थी जिन्होंने अपने सिर के ऊपर गेहूं के दाने उठाए हुए थे । भाई बचन सिंह उन चीटियां को देखकर हैरान रह गया और सोचने लगा के इतनी ठंड और बर्फ में चीटियां कैसे रह रही हैं और परमात्मा यहां पर इनके लिए भोजन का इंतजाम कैसे कर रहा है ?
दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम
अभी सपने में भाई बचन सिंह यह बात सोच ही रहा था कि उसकी नींद खुल गई और उठते ही वह उस सपने के बारे में सोचने लगा । भाई बचन सिंह को यह समझ में आ गया कि गुरुजी उसे यह बात समझाने आए थे कि हर दाने के ऊपर खाने वाले का नाम लिखा होता है । भाई बचन सिंह को यह समझ में आ गया कि मैं तो सिर्फ एक जरिया हूं यदि मैं लोगों को भोजन नहीं दूंगा तो वह लंगर किसी ना किसी तरीके से उन तक पहुंच ही जाएगा ।
शिक्षा : दोस्तों इस साखी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी इस बात पर घमंड नहीं करना चाहिए कि यह दान मैंने दिया है । परमात्मा ने इस सृष्टि में सभी के लिए खाने का इंतजाम किया है और दाने दाने पर उनका नाम लिखा है । किसी को दान देते समय और सेवा करते समय हमें उस परमात्मा का शुक्रगुजार होना चाहिए के परमात्मा ने हमें इस काबिल बनाया है ।
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