श्री गुरु नानक देव और कौडा राक्षस-Sakhi guru nanak dev ji - spiritualstories

श्री गुरु नानक देव और कौडा राक्षस-Sakhi guru nanak dev ji

श्री गुरु नानक देव और कौडा  राक्षस
Guru Nanak dev ji ki Sakhiyan in Hindi


श्री गुरु नानक देव और कौडा  राक्षस

एक बार श्री गुरु नानक देव जी और भाई मरदाना आंध्र प्रदेश की एक जंगल में से जा रहे थे । उस जंगल में रहने वाले लोग खेती-बाड़ी नहीं करते थे ।

उस जंगल में रहने वाले लोग जानवरों को मार कर ही अपने भोजन का इंतजाम करते थे अगर कभी कोई जानवर ना मिले तो वह जंगल में लगे हुए फल या कंदमूल खा कर गुजारा करते थे । वह लोग कपड़ों की जगह चमड़े से अपना शरीर ढकते थे । उस जंगल में से श्री गुरु नानक देव जी और भाई मरदाना जी को खाने के लिए कुछ भी नहीं मिला ।

भाई मरदाना जी ने गुरु जी से कहा, गुरु जी मुझे बहुत भूख लगी है । गुरुजी ने उन्हें कुछ देर तक इंतजार करने के लिए कहा, लेकिन मरदाना जी को बहुत भूख लगी थी इसलिए वह खाने की तलाश में जंगल के अंदर की तरफ चलें गए । उस जंगल में एक भयानक राक्षस रहता था जिसका नाम कौडा था । वह राक्षस किसी भी इंसान को तेल की कढ़ाई में तलकर खा जाता था ।

भाई मरदाना जी अभी कुछ दूर ही चले थे कि उन्हें कौडा राक्षस ने देख लिया । कौडा राक्षस ने भाई मरदाना जी को पकड़कर पेड़ से बांध दिया । कौडा राक्षस ने भाई मरदाना जी को तलकर खाने के लिए तेल की कढ़ाई के नीचे आग लगा दी । जब कौडा राक्षस मरदाना जी को तलने के लिए कढ़ाई में डालने लगा तो पलक झपकते ही श्री गुरु नानक देव जी वहां आ पहुंचे और एक तरफ खड़े होकर देखने लगे ।

श्री गुरु नानक देव और कौडा  राक्षस

श्री गुरु नानक देव जी ने देखा, भाई मरदाना जी को एक पेड़ से बांधा हुआ है और उनको तलने के लिए कढ़ाई में तेल गर्म हो रहा है । गुरु जी को वहां देख कर मरदाना जी का सारा डर खत्म हो गया, वह सोचने लगे अब यह राक्षस मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता । श्री गुरु नानक देव जी ने गरम तेल की कढ़ाई के ऊपर नजर डाली तो कढ़ाई का तेल एकदम ठंडा हो गया । उसके नीचे जो आग जल रही थी वह भी बुझ गई ।

कौडा राक्षस ने जब यह चमत्कार देखा तो वह हैरान हो गया उसने गुरुजी से पूछा कि आप कौन हो ? आपके आने से कढ़ाई में गर्म तेल ठंडा कैसे हो गया ? गुरु नानक देव जी ने उसका नाम लेकर कहां अब तुम उसको खाते क्यों नहीं हो ? कौडा राक्षस ने बड़ी हैरानी से गुरु नानक देव जी की तरफ देखा के यह मेरा नाम कैसे जानते हैं ? इसके बाद बाबे नानक जी ने गुरबाणी उच्चारण की । कौडा राक्षस गुरु जी के दर्शन करके और गुरबाणी सुनके निहाल हो गया उसके हाथ में जो लकड़ियां थी जो वह आग को तेज करने के लिए लेकर आ रहा था वह नीचे गिर गई ।

वह भाई मरदाना जी को पेड़ से खोलने के लिए आगे बढ़ा । भाई मरदाना जी को खोलकर कौडा राक्षस गुरु जी के चरणो में गिर गया और कहने लगा मुझे माफ कर दीजिए मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई है । मैं बहुत बड़ा पापी हूं, मैंने बहुत पाप किए हैं कृपया मुझे बख्श दे । श्री गुरु नानक देव जी ने कहा कौडा हम लोग बहुत दूर से तेरा उद्धार करने ही आए हैं । तुम अब लोगों को मारकर खाने की अपनी  बुरी आदत छोड़ दो । कौडा राक्षस ने कहा आप जो भी कहोगे वह मैं मानूंगा । मैं अपने आप को बहुत खुशनसीब समझता हूं जो आपने मुझे दर्शन दिए । कौडा राक्षस जंगल में अंदर की तरफ दौड़ गया और गुरु जी का सत्कार करने के लिए वह प्रसाद के तौर पर तरह तरह के फल तोड़ कर ले आया ।

श्री गुरु नानक देव और कौडा  राक्षस

गुरुजी ने मुस्कुराकर भाई मरदाना जी को कहा कि लो भाई मरदाना तुम्हारी भूख का इंतजाम हो गया, अब चाहे जितने मर्जी फल खाओ । भाई मरदाना जी ने गुरुजी से कहा आप भी खाओ फिर सब ने मिलकर फल खाएं । गुरुजी ने एक फल उठाकर प्रसाद के तौर पर कौडा राक्षस को दिया । प्रसाद खाते हैं उसके अंदर के कपाट खुल गए और वह वैराग्य में आ गया ।

गुरु नानक देव जी सात दिन तक कौडा राक्षस के पास रहे और उसके सभी बुरे कर्मों का नाश किया ।कौडा राक्षस ने भी अपने सभी बुरी आदतों को छोड़ने का वचन दिया और गुरुजी का बड़े प्यार से धन्यवाद किया । कौडा राक्षस को उपदेश देकर गुरु जी अपनी अगली यात्रा पर चले गए ।

शिक्षा : इस सुंदर साखी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी किसी को दुख नहीं देना चाहिए क्यों किसी को दिया गया दुख एक ना एक दिन वापस हमारे पास जरूर आएगा इसलिए जीवन में हमेशा अच्छा काम करना चाहिए और दूसरों की भलाई करनी चाहिए

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