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guru nanak dev ji ki sakhiyan |
Sakhi guru nanak dev ji
श्री गुरु नानक देव जी और भाई मरदाना को यात्रा करते करते जब बहुत दिन हो गए तो भाई मरदाना जी भूख से व्याकुल हो गए, चलते चलते रास्ते में एक घना जंगल आया जिसके अंदर काफी तरह के फलों के पेड़ लगे थे और उस जंगल में काफी जड़ी बूटियां भी लगी हुई थी लेकिन हैरानी की बात ये थी के उस जंगल में कोई भी जानवर या पक्षी दिखाई नहीं दे रहे थे ।
जंगल चारों तरफ से बिल्कुल सुनसान नजर आ रहा था । जंगल में कोई भी जानवर ना होने की वजह से सभी पेड़ फलों से भरे हुए थे क्योंकि उन फलों को खाने वाला कोई जानवर या पक्षी वहां नहीं था । चलते चलते मरदाना जी गुरु नानक देव जी को कहने लगे, गुरुजी, आप थोड़ी देर आराम कर ले क्योंकि मुझे बहुत भूख लग रही है, मैं इस जंगल में जाकर अपने मनपसंद फलों को खा कर अपना पेट भर लेता हूं लेकिन गुरु जी ने भाई मरदाना को कहा, इस जंगल में हमारा रुकना ठीक नहीं है तुम जंगल की बाहरी खूबसूरती देखकर इसको अच्छा मत समझो क्योंकि इस जंगल में जीवन का नामोनिशान नजर नहीं आ रहा ।
Sakhi guru nanak dev ji
भाई मरदाना जी को भूख बहुत ज्यादा लग रही थी, गुरु नानक देव जी के मुंह से ये शब्द सुनकर भाई मरदाना जी ने खीझ कर गुरुजी को कड़वे वचन बोलने शुरू कर दिए और कहने लगे, जिस जगह भी मेरे खाने के लिए कोई चीज होती है वहां आप मुझे रोक देते हो और खाने नहीं देते मैं आपके साथ रहकर ऐसे ही कुछ दिनों में भूखा मर जाऊंगा जब आपको पता है मैं भूख बर्दाश्त नहीं कर सकता, फिर भी आप मुझे इस जंगल में फल खाने के लिए रोक रहे हो खीझते खीझते भाई मरदाना जी बिना गुरु जी की आज्ञा लिए जंगल में फल खाने के लिए चले गए ।
भाई मरदाना जी जंगल में जाकर फल खाने लग गए, फल खाकर भाई मरदाना जी का पेट भर चुका था पर लालच के कारण और ज्यादा फल खा रहे थे । जंगल में एक भयानक दानव रहता था जिसका शरीर पहाड़ जितना बड़ा था सिर पर बड़े-बड़े सींग थे उस दानव ने जंगल के सारे जानवरों और पक्षियों को खा लिया था ।
भाई मरदाना जी फल खाने में मग्न थे , जब दानव को जंगल में हलचल दिखाई दी तो उसने आकर भाई मरदाना जी को पकड़ लिया और अपने मुंह में डाल लिया और बिना चबाए ही अंदर निगल गया, भाई मरदाना जी के साथ जब ये घटना हुई तो वे बहुत डर गए पर मुंह से कुछ ना बोल सके लेकिन अपने मन में, गुरु नानक देव जी को याद करने लगे और प्रार्थना करने लगे कि, गुरु जी मेरी रक्षा करो मैं मूर्ख था जो आपकी बात नहीं मानी और आपको कड़वे वचन बोल बैठा ,जो कुछ मैं अज्ञानता की वजह से बोल गया हु उसके लिए मुझे क्षमा करो और मुझे इस दानव से बचा लो ।
Sakhi guru nanak dev ji
गुरु नानक देव जी को सब पता था, भाई मरदाना की पुकार सुनकर उसको बचाने के लिए चल पड़े । श्री गुरु नानक देव जी दानव के बिल्कुल सामने खड़े हो गए ताकि वह दानव उन्हें देख सके जैसे ही दानव ने गुरुजी को देखा तो उसने गुरुजी को अपने हाथों से पकड़ कर मुंह में डाल लिया और बिना चबाये साबुत ही निगल गया । जब गुरु नानक देव जी दानव के पेट में पहुंचे तो उन्हें वहां भाई मरदाना जी मिले जिनको गुरु जी ने समझाया के डरने की कोई जरूरत नहीं है।
गुरु नानक देव जी ने अपने शरीर को भी बड़ा कर लिया, गुरुजी ने जब अपने अंगों को फैलाया तो दानव के पेट में तकलीफ होने लगी, जब दानव से ये तकलीफ बर्दाश्त ना हुई तो उसने अपने शरीर को और बड़ा कर लिया, इसके बाद गुरु जी ने भी अपना शरीर और फैला लिया । वो दानव जैसे-जैसे अपना शरीर बढ़ा रहा था गुरु नानक देव जी भी वैसे वैसे अपना शरीर और फैला रहे थे और आखिर में जब दानव से बर्दाश्त नहीं हुआ तो वो जमीन पर गिर गया और उसकी आत्मा शरीर से निकल गई ।
जब गुरु नानक देव जी भाई मरदाना को लेकर उसके पेट से बाहर निकले तो दानव की आत्मा ने एक सुंदर मनुष्य का रूप धारण कर लिया और गुरु जी को नमस्कार किया और कहने लगा कि गुरु जी जब जनक विदेही में राज करता था उस समय मै मनुष्य के रूप में था और मैं वहां रसोइए के तौर पर काम करता था । एक बार राजा ने साधु-संतों को खाने पर बुलाया और उनके लिए सारा खाना मैंने बनाया पर उस समय मुझे भूख बहुत ज्यादा लगी हुई थी इसलिए मैंने छुपकर सबसे पहले खाना खा लिया
इस बात का पता जब राजा को चला के संतों का अपमान हुआ है और मैंने उनको खाना खिलाने से पहले खुद खा लिया है तो राजा ने सारा खाना नदी में फेंकवा दिया और गुस्से में आकर मुझे श्राप दिया कि 24 घंटे के बाद तुम एक बड़े दानव के रूप में बदल जाओगे राजा के मुंह से ये बात सुनकर मैंने राजा से पूछा, महाराज गलती तो मुझसे हो गई है पर आप मुझे ये बता दो के मेरी मुक्ति कब होगी तब राजा ने मुझे कहा, कलयुग में परमात्मा गुरु नानक देव जी का रूप लेकर इस धरती पर आएंगे, उनके मिलाप से ही तुम्हारा उद्धार होगा और आज मेरा आपसे मिलाप हुआ है और मुझे मुक्ति मिल गई है । गुरुजी मैं आपके दर्शन करके निहाल हो गया हूं कृपया मुझे परलोक जाने की अनुमति दें तब गुरुजी ने उसको परलोक जाने की आज्ञा दी और वे गुरु जी को नमस्कार करके चला गया भाई मरदाना जी ने गुरु जी से अपनी गलती की माफी मांगी और आगे की यात्रा पर चल पड़े ।
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