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श्री गुरु गोबिंद सिंह जी और कीड़े वाला सांप

श्री गुरु गोबिंद सिंह  जी और कीड़े वाला सांप श्री गुरु गोबिंद सिंह  जी एक बार शिकार के लिए जंगल में गए । कुछ दूर चलने के बाद गुरुजी अपने घोड़े से उतरकर एक पेड़ के पास जाकर रुक गए, पेड़ के आसपास बहुत बड़ी बड़ी झाड़ियां थी. कुछ देर के पश्चात झाड़ियों के अंदर से एक…

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श्री गुरु गोविंद सिंह जी और कबूतर का रिश्ता

  गुरु का शिष्य के प्रति प्रेम एक समय दशम पातशाह गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी अपने शिष्यों के साथ राजस्थान के एक स्थान जिसका नाम नोहर था, वहां पहुंचे. नोहर में जैन धर्म के लोग भी रहा करते थे, जो अहिंसावादी थे. जैन धर्म के लोग कबूतर पालते थे, उनको अपने कबूतरों से…

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गुरु गोबिंद सिंह और कबूतर की मुक्ति

एक बार दशम गुरु श्री गोबिंद सिंह जी अपने सिखों के साथ राजस्थान के एक गांव में पहुंचे, उस गांव में जैन धर्म के लोग भी रहते थे जो अहिंसा में विश्वास रखते थे। वह लोग कबूतर पालते थे, उनको कबूतरों से बहुत ज्यादा लगाव था। वह लोग कबूतरों को दाना चुगआते थे और कबूतरों…

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गुरु गोविंद सिंह और भाई सैदा की प्रेम साखी

 यह साखी गुरु गोविंद सिंह जी के समय की है।गुरु गोविंद सिंह जी दरिया पार करके कीर्तन करने जाया करते थे।बहुत से  मल्लाह  रोज गुरु को दरिया पार करवाया करते थे।वहीं पर एक मल्लाह था। एक मुसलमान भाई सैदा नाम का था।वह बहुत ही गरीब था उसकी नाव टूटी फूटी थी।लेकिन उसके अंदर बड़ा ही…

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डल्ला की परीक्षा

   एक बार का जिक्र है कि मुसलमानों की  हुकूमत के दिनों में एक समय ऐसा आया जब गुरु गोविंद सिंह जी को मजबूरन आनंदपुर छोड़ना पड़ा।  डल्ला नामक बराड़ कौम का एक सरदार गुरु साहिब से मिला और बोला, “महाराज ! अगर आप हमें खबर करते तो हम आकर मुसलमानों से मुकाबला करते, आपको…

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संगत करने का क्या लाभ

  गुरु अर्जुन साहेब के दर्शन करने हिमाचल के साकेत शहर का राजा आया। गुरुदरबार में कीर्तन चल रहा था । रागी शब्द गा रहे थे लेख ना मिटिये हे सखी जो लिखेया करतार राजा ने प्रश्न किया महाराज : अगर किस्मत के लेख मिटते नही है तो संगत करने का क्या लाभ है ।…

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गुरु रामदास और मिट्टी के चबूतरे

 जब तीसरे गुरु, गुरु अमर दास जी ने अपना उत्तराधिकारी चुनने का मन बनाया तो उनके शिष्यों में से बहुत से ऐसे थे जिन्हें विश्वास था कि शायद गुरु साहिब उन पर दया करके उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दें। पर जैसा कि आमतौर पर ऐसी स्थिति में होता है, ग्रुप साहिब ने सबको इम्तिहान…

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संत नसीब बदल देते हैं

  एक बार दशम पातशाही श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी का दरबार सजा हुआ था। कर्म-फल के प्रसंग पर पावन वचन हो रहे थे कि जिसकी जो प्रारब्ध है उसे वही प्राप्त होता है कम या अधिक किसी को प्राप्त नहीं होता क्योंकि अपने किये हुये कर्मों का फल जीव को भुगतना ही पड़ता है।…

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भाई बेला का पाठ

 गुरु गोविंद सिंह जी के सत्संग में एक सीधा साधा किसान चला आया और गुरु साहिब से कहने लगा कि मुझे कोई सेवा बक्शो | उस जमाने में मुगलों से लड़ाइयां होती रहती थी | गुरु साहिब ने पूछा, “तुझे बंदूक चलानी आती है ?” ” नहीं |” फिर गुरु साहिब कहने लगे, “क्या तुझे…

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सूली का शूल बन गया

   एक बार का जिक्र है, एक साहूकार था जो अपने कारोबार में अन्य लोगों से भिन्न था | उसे एक पूरे गुरु की खोज थी जो उसे सत्य का ज्ञान दे सके | उन दिनों गुरु नानक देव का नाम हिंदुस्तान के कोने कोने में फैल चुका था | उस साहूकार को उनसे मिलने…

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